देहरादून: बैंक ऑफ बड़ौदा ने अपने संगठन के लोगों के लिए अपने ग्राहकों के खातों से पैसे चुराना सरल और आसान बना दिया। बैंक के आतंरिक पत्राचार और जाँच रिपोर्टों से पता चलता है कि बैंक से जुड़े लोगों ने ही 362 ग्राहकों से 22 लाख रुपये की चोरी की है।

बैंक ऑफ़ बड़ौदा की यह जाँच रिपोर्ट द रिपोर्टर्स कलेक्टिव-अल जज़ीरा की स्टोरी के बाद आई है। रिपोटर्स कलेक्टिव और अल जज़ीरा ने अपनी स्टोरी में बताया था कि बैंक के कर्मचारियों ने अनाधिकृत मोबाइल नंबरों को उन ग्राहकों के खातों से जोड़ा था जिनके खाते से मोबाइल नंबर नहीं जुड़े थे। यह इसलिए किया गया था ताकि इन ग्राहकों को बैंक के नए मोबाइल बैंकिंग ऐप, बॉब वर्ल्ड, पर पंजीकृत किया जा सके। ये अनाधिकृत मोबाइल नंबर बैंक कर्मचारियों, शाखा प्रबंधकों, गार्डों, उनके रिश्तेदारों और दूरदराज के क्षेत्रों में काम करने वाले बैंक एजेंटों के थे।  

रिपोर्टर्स कलेक्टिव की स्टोरी ने चेताया था कि ऐप पर पंजीकरण बढ़ाने के दबाव में अपनाऐ गए इस जुगाड़ के कारण ग्राहकों के पैसों पर गंभीर खतरा पैदा हो सकता है। बैंक ने पिछले साल आतंरिक ईमेल में इस खतरे को स्वीकार किया था। फर्जी मोबाइल नंबरों के विषय से जुड़े कई ईमेल में उल्लेख है, "इससे धोखाधड़ी की संभावना बहुत ज्यादा बढ़ जाती है।"

बैंक हेड ऑफिस के आतंरिक दस्तावेज स्वीकारते हैं कि धोखा हुआ है और बैंक के एजेंटों (बिजनेस कॉरेस्पोंडेंट) ने मोबाइल बैंकिंग का उपयोग करके ग्राहकों के खातों से हजारों रुपये निकाले हैं। छह ग्राहक ऐसे हैं जिनको 1.1 लाख रुपये से ज्यादा का नुकसान हुआ है, जबकि एक को लगभग 1.77 लाख रुपये का नुकसान हुआ है। एक एजेंट ने 3.9 लाख रुपये से ज्यादा रकम की चोरी की है। बैंक हेड ऑफिस ने संबंधित बैंक मैनजरों से कहा है, “ग्राहक के खातों में धन की वसूली और बहाली के लिए जरूरी कार्रवाई शुरू की जाए।” 

बैंक हेड ऑफिस के उप महाप्रबंधक की तरफ से यह पत्र जारी किया गया था। इस पत्र के अनुसार देश भर के 7 राज्यों में अनधिकृत मोबाइल डेबिट मामलों का पता चला है। स्रोत: बैंक कर्मचारी

देश के केंद्रीय बैंक भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने द रिपोर्टर्स कलेक्टिव और अल जजीरा की छानबीन के बाद बैंक को ऑडिट करने का आदेश दिया था। इस मंगलवार को रिज़र्व बैंक ने कहा कि उसने बैंक ऑफ़ बड़ौदा को बॉब वर्ल्ड पर नए ग्राहकों को अग्रिम सूचना तक पंजीकृत ना करने का आदेश दिया है। रिज़र्व बैंक के अनुसार इस निर्णय का कारण था बॉब वर्ल्ड पर ग्राहकों को जोड़ने की प्रक्रिया में मिली कुछ कमियाँ। 

उपरोक्त ऑडिट में बैंक ऑफ़ बड़ौदा ने करीब 4.2 लाख खातों के दस्तावेजों का सत्यापन किया। ये वह खाते थे जिन पर संदेह था कि बैंक कर्मचारियों ने गलत तरीके से एप पर इनका पंजीकरण करवाया है। बैंक के शाखा कर्मचारियों ने 29 और 30 जुलाई को देश भर में लगभग 7,000 शाखाओं में फैले इन खातों का ऑडिट किया। इस जाँच के लिए कर्मचारियों को दूसरी शाखाओं में भेजा गया। अंतिम जाँच रिपोर्टों ने विधिवत तरीके से खामियों को उजागर किया है, जो दर्शाती हैं कि उच्च स्तर पर उचित जाँच हुई है, मगर ये रिपोर्टें इंटरनल ऑडिट के निम्न स्तर को भी दर्शाती हैं। कई बैंक कर्मचारियों ने रिपोर्टर्स कलेक्टिव को बताया कि यह ऑडिट गलत काम का पता लगाने से ज्यादा गलत काम को छिपाने के लिए किया गया था। उन्होंने बताया कि अपने रीजनल ऑफिस के निर्देशों पर उन्होंने ऑडिट के लिए जाली दस्तावेज़ों की व्यवस्था की और जाली दस्तावेज बनाए।

एक कर्मचारी, जिसने खुद ग्राहकों से दस्तावेज़ हासिल किए थे, उसने बताया: “बैंक जानता है कि वह गलत है (बॉब वर्ल्ड नामांकन के संबंध में)। अब बैंक डैमेज कंट्रोल मोड में चल रहा है।

बैंक ऑडिटिंग और फोरेंसिक अकाउंटिंग के विषय के विशेषज्ञों का कहना है कि बैंक ऑफ बड़ौदा को ऑडिट करने के लिए अपने शाखा कर्मचारियों को नियुक्त नहीं करना चाहिए था। उनका कहना है कि निष्पक्ष जांच के लिए इस काम को आउटसोर्स किया जाना चाहिए था।

बैंक ने अपने इंटरनल ऑडिटरों को कहा था कि वह मुख्य तौर पर बैंक ऑफ़ बड़ौदा के उन आवेदन पत्रों की जाँच करे जो यह दिखाते हैं कि ग्राहकों ने बॉब वर्ल्ड ऐप के लिए आवेदन किया था और उन फॉर्म को जाँचे जिन पर ग्राहकों ने अपने खाते से जुड़े मोबाइल नंबर बदलने के लिए हस्ताक्षर किए हैं। इस तरह के फॉर्म की मौजूदगी इस बात का प्रमाण होगी कि बैंकिंग कर्मचारियों ने फर्जी तरीके से ऐप के रजिस्ट्रेशन को बढ़ाने के लिए धोखाधड़ी का काम नहीं किया। द कलेक्टिव के हाथ आए ऑडिट रिपोर्ट से पता चलता है कि ज्यादातर मामलों में दस्तावेज नहीं मिले।  

गंभीर कमियाँ

आठ क्षेत्रों की ऑडिट रिपोर्ट से पता चला कि बमुश्किल एक तिहाई खातों में बॉब वर्ल्ड का आवेदन पत्र था। इन ऑडिट रिपोर्ट ने नोट किया कि कई ऐसे खाते जिन्होंने बॉब वर्ल्ड एप्लिकेशन को साइन अप किया, उनके रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर की जगह पर संबंधित शाखा या शाखा प्रबंधक या बिजनेस कोरेस्पोंडेंट का नंबर जुड़ा हुआ था। बिजनेस कोरेस्पोंडेंट बैंकों के एजेंट के तौर पर काम करते हैं और कस्टमर सर्विस सेंटर यानि ग्राहक सेवा केंद्रों के जरिये गाँव देहात और दूरदराज के क्षेत्रों में बैंकिंग सेवाएं देने का काम करते हैं।

ऑडिट में पाया गया कि कई खाते अजनबियों के मोबाइल नंबरों से जुड़े थे। बाद में अपने आप ही बैंक ने इन नंबरों को खातों से हटा भी दिया। ऑडिट के बाद बैंक ने शाखाओं को ऐसे खातों पर मोबाइल बैंकिंग को तुरंत ब्लॉक करने का निर्देश दिया है। ऐसे भी उदाहरण सामने आये जिनमें ग्राहको ने खाता खोलने के फॉर्म पर जो मोबाइल नंबर दिया था, उस नंबर से अलग नंबर उसके खाते से जुड़ा हुआ था और बॉब वर्ल्ड पर रजिस्टर्ड था।

साथ ही, बैंक की नीति कहती है कि एक मोबाइल नंबर को ज्यादा से ज्यादा आठ बैंक खातों से जोड़ा जा सकता है — वह भी केवल तभी जब सभी खाते एक ही परिवार के हों — परन्तु ऑडिट रिपोर्ट इस नीति के उल्लंघन के कई उदाहरणों को दर्ज करती है। इस नीति के उल्लंघन के तौर पर ये रिपोर्ट कई ऐसे मोबाइल नंबरों को सूचीबद्ध करती है, जिनमें 10-60 खाते जुड़े हुए हैं — ऐसे ज्यादातर खातों को खुलवाने का काम किसी न किसी बिजनेस कोरेस्पोंडेंट ने किया हुआ है। एक रीजन की रिपोर्ट सिफारिश करती है कि ऑडिट किए गए खातों में से करीब एक चौथाई खातों के मोबाइल नंबरों को अनलिंक कर दिया जाए।

ऑडिट रिपोर्ट के अखिल भारतीय निष्कर्ष भी इन चिंताओं को साझा करते हैं। सभी जोनल और रीजनल प्रमुखों को 10 अगस्त को भेजे गए एक पत्र में बैंक ऑफ बड़ौदा के चीफ जनरल मैनेजर बी एलंगो ने लिखा: “ऑडिट के नतीजों से पता चला है कि बुनियादी जरूरी दस्तावेजों की उपलब्धता के संबंध में कमियां हैं और हमने जो कमियाँ देखी गईं हैं, उन्हें जारी रखने की अनुमति नहीं दे सकते हैं।"

वह आगे कहते हैं, "इन निष्कर्षों की गंभीरता को देखते हुए हमने अनियमितताओं को जल्द से जल्द ठीक करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।" पत्र में कहा गया है कि बैंक की शाखाओं  को लापता दस्तावेजों को हासिल करने के लिए ग्राहकों से संपर्क करना चाहिए। जिन्हें ऊँचे स्तर पर मौजूद कार्यालयों के सत्यापन के बाद सुरक्षित रखना चाहिए।  

इस पत्र में बैंक औपचारिक रूप से ऑडिटिंग में सामने आई कमियों को स्वीकार करता है एवं उन्हें ठीक करने के लिए एक योजना तैयार करता है। स्रोत: एक बैंक कर्मचारी

डैमेज कंट्रोल

हालाँकि बैंक ने अनधिकृत डेबिट और गुम दस्तावेजों के मामले को स्वीकार किया है, कर्मचारियों द्वारा साझा किए गए साक्ष्यों और अनुभवों से पता चलता है कि कुछ रीजनल ऑफिसों ने अपने जूनियर कर्मचारियों को जाली दस्तावेज बना कर बुरी स्थिति को बचाने के लिए कहा  था।

कवर-अप रणनीति में से एक तरीका था मोबाइल बैंकिंग सहमति प्रपत्रों पर बैंक ग्राहकों के हस्ताक्षर और अंगूठे के निशान को जल्दबाजी में जोड़ना। इनमें से कई दस्तावेज़ों पर पुरानी तारीख डाल दी गयी थी। यह सब इसलिए किया गया था ताकि ऑडिटर यह प्रमाणित कर सकें कि सभी दस्तावेज़ सही से मौजूद हैं।

तीन राज्यों के कर्मचारियों ने द कलेक्टिव को बताया कि जिन शाखाओं का उन्होंने निरीक्षण किया या जहाँ वो काम करते हैं , वहाँ कई खातों के लिए ये दस्तावेज़ उपलब्ध नहीं थे। जो उपलब्ध थे, उनमें हेराफेरी की गई थी — कुछ मामलों में हस्ताक्षर जाली थे। अन्य मामलों में ऑडिटिंग से पहले बैंक स्टाफ को हस्ताक्षर लेने के लिए जरूरी कागजात के साथ खाताधारकों के घर पर भेजा गया।

कलेक्टिव ने उत्तर प्रदेश और गुजरात राज्यों के कुछ खाताधारकों के लिए बनाए गए ऐसे दस्तावेज़ों की प्रतियां देखी हैं। उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश की एक शाखा के दस्तावेजों में केवल खाताधारक के हस्ताक्षर थे और कोई अन्य विवरण नहीं था। इन फॉर्मों को द कलेक्टिव के साथ साझा करने वाले आंतरिक लेखा परीक्षक ने कहा कि यह शाखा कर्मचारी ही थे जिन्होंने विवरण भरे। इन विवरणों में  मोबाइल नंबर और आवेदन की तारीख जैसे महत्वपूर्ण बिंदु शामिल थे। 

शाखा कर्मचारियों द्वारा मोबाइल बैंकिंग का आवेदन भरने से पहले एक ग्राहक का मोबाइल बैंकिंग सेवा के लिए लिया गया आवेदन। इसी तरह मोबाइल नंबर बदलने के लिए खाली फॉर्म और उन जरूरी दस्तावेजों पर ग्राहकों के हस्ताक्षर लिए गए, जिनकी ऑडिटिंग की जानी थी। स्रोत: इंटरनल ऑडिटर

इस ऑडिटर ने बताया कि उनके रीजनल मैनेजर ने एक वीडियो कॉन्फ्रेंस कर सभी ऑडिटरों से शाखा कर्मचारियों के साथ "सहयोग" करने कहा था और यह प्रमाणित करने की कोशिश करने के लिए कहा था कि सभी खाते ठीक हैं। ऐसे निर्देशों की वजह से ऑडिटर ने कहा कि हमने उन फॉर्मों को भी मंजूरी दे दी है जिनके बारे में हमें पता था कि ये नए सिरे से हासिल किए गए हैं।

उत्तर प्रदेश की एक अन्य बैंक शाखा और गुजरात की एक शाखा से, द कलेक्टिव ने ऑडिटेड फॉर्म की प्रतियां देखीं। इन प्रतियों पर ग्राहकों के हस्ताक्षर की बजाय अंगूठे के निशान थे। इन फॉर्मों को साझा करने वाले बैंक कर्मचारियों ने कहा कि उन्हें नहीं पता कि जो किसान हस्ताक्षर भी नहीं कर सकते, वह मोबाइल बैंकिंग ऐप का उपयोग कैसे कर सकते हैं। कर्मचारियों ने कहा कि ऑडिटिंग से ठीक पहले इन फॉर्मों पर अंगूठे के निशान लिए गए थे और शाखा के कर्मचारियों ने ये फॉर्म भरे थे।

द कलेक्टिव ने जो ऑडिट रिपोर्ट देखी है, उसमें इस बात को भी रेखांकित किया गया है कि कई ऐसे ग्राहक बॉब वर्ल्ड एप पर रजिस्टर्ड थे, जो पढ़े-लिखे नहीं थे। उनमें से कइयों को उनके खाते से जुड़े बिजनेस कॉरेस्पोंडेंट के मोबाइल नंबर के जरिये बॉब वर्ल्ड पर रजिस्टर किया गया था। एक ऑडिट रिपोर्ट कहती है कि अनपढ़ ग्राहक ऐप के लिए पात्र नहीं हैं। 15 साल से कम उम्र के बच्चे भी पात्र नहीं हैं, लेकिन कई नाबालिगों के खाते ऐप पर रजिस्टर हैं।

ऐप नामांकन की वजह से जांच के दायरे में आए कई खाते प्रधानमंत्री जन धन योजना के तहत खोले गए थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू की गई इस योजना का मकसद गरीबों को खाते में न्यूनतम शेष राशि की शर्त को पूरा किये बिना बैंकिंग प्रणाली से जोड़ना है। ऐसा इसलिए है कि गरीबों के पास बैंक खाता हो और सरकार उसमे सब्सिडी का भुगतान कर पाए।

एक बैंक कर्मचारी ने कहा कि उसने और उसके सहकर्मियों ने इन ग्राहकों से फॉर्म पर हस्ताक्षर करवाने के लिए दबाव की रणनीति अपनाई। उन्होंने कहा कि कर्मचारियों ने ग्राहकों से कहा कि उन्हें खाता विवरण अपडेट करने के लिए दस्तावेजों पर तत्काल हस्ताक्षर करने की जरूरत है, अन्यथा खाते बंद हो जाएंगे या सब्सिडी बंद हो जाएगी। बॉब वर्ल्ड की ऑडिटिंग के बारे में उन्हें कुछ नहीं बताया गया व अंधेरे में रखा गया।

इस कर्मचारी ने एक और कमी उजागर की। ऑडिटरों को खाता खोलने के फॉर्म को भी सत्यापित करने के लिए कहा गया था क्योंकि इनमें ग्राहक का मोबाइल नंबर होता है। लेकिन कई खातों के वे फॉर्म नहीं थे जो खाता खोलते समय ग्राहक से भरवाया जाता है। इसलिए अन्य दस्तावेजों के साथ, कुछ शाखा कर्मचारियों ने इन फॉर्मों पर भी ग्राहकों के हस्ताक्षर/अंगूठे के निशान प्राप्त किए। चूंकि इस शाखा के कर्मचारी इन फॉर्मों पर पिछली तारीख डालकर जोखिम उठाना नहीं चाहते थे, उन्होंने या तो तारीख खाली छोड़ दी या कुछ नए फॉर्मों पर जिस दिन ऑडिटिंग की जा रही थी, उस दिन की तारीख दर्ज कर दी। इस तरह से ये खाता खोलने वाले फॉर्म खाता खोलने की तारीख 29 या 30 जुलाई (ऑडिटिंग की तारीखें) दर्शाते हैं, जबकि ये खाते कम से कम से कम कुछ साल पहले खोले गए थे।

द कलेक्टिव द्वारा देखी गई ऑडिट रिपोर्ट से पता चलता है कि इस जुगाड़ का काफी सामान्य रूप से पालन किया गया था। ये रिपोर्टें न केवल कमियों को उजागर करती हैं, बल्कि इंटरनल ऑडिट के निम्न स्तर को भी स्थापित करती हैं। ग्राहकों के पहचान से जुड़े कई दस्तावेज अधूरे हैं, कइयों पर हस्ताक्षर नहीं है, कइयों पर तारिख नहीं दर्ज है, कई सत्यापित नहीं है, तो कई दस्तावेज कई तरह के कारणों से अमान्य बन चुके हैं।

विशेषज्ञों का कहना है कि शाखा स्तर पर अगर निष्पक्ष ऑडिट की जाती तो ऐसे दस्तावेजों को अस्वीकार कर दिया जाता।

चिंता का विषय

भारत में फॉरेंसिक अकाउंटिंग के अगुआ माने जाने वाले सर्टिफाइड बैंक फॉरेंसिक अकाउंटेंट मयूर जोशी ने द कलेक्टिव को बताया कि ऑडिटिंग में जांचकर्ताओं को विसंगतियों पर ध्यान देना चाहिए, जैसे कि पुरानी तारीख वाला ताजा, स्पष्ट फॉर्म; या पुरानी तारीख वाले फॉर्म का एक नया प्रारूप। उन्होंने कहा कि ऐसी ऑडिटिंग फर्में हैं जो दस्तावेज़ सत्यापन में वैसी विशेषज्ञता रखती हैं, जिसके लिए बैंक ऑफ बड़ौदा ने अपने शाखा कर्मचारियों को नियुक्त किया है। उन्होंने कहा कि बैंक को इस मामले के लिए एक बाहरी ऑडिटर नियुक्त करना चाहिए था।

निखिल पारुलकर एक सर्टिफाइड फ्रॉड एग्जामिनर हैं। इनके पास बैंकिंग और कंसल्टेंसी इंडस्ट्री  में दो दशकों का अनुभव है। इन्होने कहा कि आरोपों की गंभीरता के कारण एक स्वतंत्र और निष्पक्ष ऑडिट की जरूरत थी। “आप किसी ब्रांच मैनेजर से ऑडिट करने के लिए कैसे कह सकते हैं? जबकि यह उसके काम के दायरे से बाहर की बात है। क्या वह ऑडिट करने के लिए सक्षम प्राधिकारी है?''

पारुलकर ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि अगर ग्राहकों के दस्तावेज़ वास्तव में उपरोक्त तरीकों से हासिल किए गए हैं तो यह बहुत गलत तरीका है।

जोशी ने बताया कि ताजा हासिल किये गए फॉर्म और पिछली तारीख वाले फॉर्म को ऑडिटिंग की दुनिया में  चिंता का विषय माना जाता है। उन्होंने कहा कि बुनियादी दस्तावेजों को नए सिरे से हासिल करने की जरूरत एक गंभीर मुद्दा है। यह इंगित करता है कि बैंक के पास ये दस्तावेज नहीं थे। यह आरबीआई के निर्देशों का उल्लंघन है और बैंक पर जुर्माना लग सकता है।

नंबर का खेल

25 जुलाई को द रिपोर्टर्स कलेक्टिव और अल जज़ीरा की स्टोरी के प्रकाशन के दो हफ्ते बाद भोपाल जोन के एक रीजनल ऑफिस ने अपनी शाखाओं को एक ईमेल भेजा। मेल का विषयवस्तु था: "अर्जेन्ट रिमाइंडर: ग्राहकों के खातों में स्टाफ मोबाइल नंबर दर्ज किया जाए"।

ईमेल की शुरूआती  पंक्ति में लिखा था : "हम उपर्युक्त विषय का संदर्भ ले रहे हैं और ग्राहक आईडी की सूची साझा करते हैं जिसमें बैंक कर्मचारियों के मोबाइल नंबर या बैंक के सीयूजी [क्लोज्ड यूजर ग्रुप] नंबर ग्राहकों के खातों से जुड़े हुए हैं। तत्पश्चात इन्हीं मोबाइल नम्बरों का इस्तेमाल कर इन खातों को बॉब वर्ल्ड पर रजिस्टर किया गया था " ईमेल में इन शाखाओं से इन मामलों की जांच करने और स्थिति को सुधारने के लिए कहा गया है। ट्रेल मेल से पता चलता है कि यह ईमेल बैंक के हेड ऑफिस से भेजा गया था।

यह ईमेल बैंक के हेड ऑफिस से जारी किया गया था। वहां से जोनल और रीजनल ऑफिस से होते हुए बैंक की शाखाओं तक पहुंचाया गया। स्रोत: बैंक कर्मचारी

1 अगस्त को बैंक ऑफ बड़ौदा के हेड ऑफिस ने भोपाल के जोनल हेड को एक ईमेल भेजा। मेल की शुरुआती लाइन में लिखा है: "जैसा कि हमें निर्देश दिया गया है, हम यहां स्टाफ और बिजनेस कॉरेस्पॉन्डेंट्स (बीसी) के मोबाइल नंबरों की सूची साझा कर रहे हैं, जो आपके क्षेत्र में क्रमशः 316 और 1283 ग्राहक आईडी से जुड़े हुए हैं..."  इस मेल में आगे लिखा था कि हेड ऑफिस ने पहले ऐसी  313 और 4,118 ग्राहक आईडी की सूची भेजी थी।

बैंक के हेड ऑफिस से भोपाल के जोनल ऑफिस को भेजे गए इस ईमेल से पता चलता है कि बैंक कर्मचारियों के मोबाइल नंबर 1 अगस्त को भी ग्राहकों के खातों से जुड़े हुए थे। स्रोत: बैंक कर्मचारी

बैंक कर्मचारियों का कहना है कि जब ग्राहक खाता खोलने के लिए बिजनेस कॉरेस्पॉन्डेंट्स के पास जाते हैं और उनके पास मोबाइल फोन नहीं होता है, तो बिजनेस कॉरेस्पॉन्डेंट्स ग्राहक के फोन नंबर की जगह अपना मोबाइल नंबर दर्ज कर देते हैं। अब शाखाओं ने अपने एजेंटों से उन बैंक खातों की सूची देने के लिए कहा है जिनमें उनका मोबाइल नंबर रखना है जैसे कि उनके परिवार के सदस्यों के खाते की सूची  और उन खातों की सूची जिनसे उनके नंबर अनलिंक किया जाना है।

ये ईमेल और दस्तावेज़ बॉब वर्ल्ड नामांकन के बारे में अल जज़ीरा और रिपोटर्स कलेक्टिव की कहानी पर बैंक की प्रतिक्रिया का खंडन करते हैं। उस समय बैंक ने दावा किया था: "ऐप पर पंजीकरण को बढ़ावा देने के लिए अप्रमाणित, अजनबी या गैर-ग्राहक मोबाइल नंबरों का उपयोग करने का उठाया गया मुद्दा तथ्यात्मक रूप से सही नहीं है।"

इसके अलावा अल जज़ीरा की पिछली कहानी से पता चलता है कि पिछले साल बैंक के भोपाल ज़ोन में ही सैकड़ों मोबाइल नंबर दर्जनों खातों से जोड़े गए थे। बैंक की नीति एक नंबर को आठ से अधिक खातों से जोड़ने की अनुमति नहीं देती है, लेकिन कुछ नए आतंरिक ईमेल यह प्रमाणित करते हैं कि इस नीति को लागू नहीं करवाया गया था। 19 जुलाई को बैंक के हेड ऑफिस  ने सभी जोनल और रीजनल ऑफिस को आठ से अधिक ग्राहक आईडी से जुड़े मोबाइल नंबरों की अखिल भारतीय सूची के साथ एक ईमेल भेजा। इस सूची के मुताबिक जुलाई तक कई मोबाइल नंबर दो दर्जन, तीन दर्जन और यहां तक कि चार दर्जन से ज्यादा खातों से जुड़े हुए थे। ऐसे खातों की संख्या 2.25 लाख थी।  

बैंक के हेड ऑफिस से सभी जोनल और रीजनल ऑफिस को भेजा गया यह ईमेल जितनी अनुमति दी गयी है, उससे ज्यादा बैंक खातों से जुड़े मोबाइल नंबरों की अखिल भारतीय लिस्ट के साथ भेजा गया था। स्रोत: बैंक कर्मचारी

बैंक के हेड ऑफिस ने इससे एक दिन पहले इसी तरह का एक ईमेल भेजा था, जिसमें जोनल और रीजनल ऑफिस से कहा गया था कि “8 से ज्यादा  ग्राहक आईडी में एक ही मोबाइल नंबर को क्यों जोड़ा गया? इसके जवाब में बैंक उचित कारण बताए। अगर 8 से ज्यादा ग्राहक आईडी में एक ही मोबाइल नंबर की जरूरत नहीं है, तो कृपया इसे बैक एंड से हटाने के लिए अपनी सिफारिश दे।”

फिर रीजनल ऑफिसों ने यह ईमेल बैंक की शाखाओं को उन खातों की सूची के साथ भेजा, जिनसे अनधिकृत मोबाइल नंबरों को अनलिंक करने की जरूरत थी। कलेक्टिव ने ईमेल की प्रतियों की समीक्षा की है।

कर्मचारी हताश

बैंक ऑफ बड़ौदा में हुए घोटाले का असर कर्मचारियों पर पड़ा है। उनमें से कई लोगों ने द कलेक्टिव को बताया कि उन्हें दोहरी मार का सामना करना पड़ा है। सबसे पहले बैंक ने कर्मचारियों को कहा कि वे किसी भी तरीके से बॉब वर्ल्ड पर ग्राहकों को पंजीकृत करवाएँ और फिर बैंक ने कर्मचारियों पर दबाव डाला कि वे उन दस्तावेजों को दिखायें जो प्रमाणित करते हैं ग्राहकों ने बॉब वर्ल्ड की सेवाओं के लिए अनुरोध किया था।

ऑडिटिंग के दौरान लीपापोती में शामिल बैंक कर्मचारियों ने कहा कि अगर आरबीआई आगे की जाँच  के लिए उनके फॉर्म टटोलता है तो वे में मुसीबत में पड़ सकते हैं, लेकिन अगर उन्होंने अपने रीजनल मैनेजर की बात नहीं मानी होती और सच्ची ऑडिट रिपोर्ट तैयार की होती तो वे निश्चित तौर पर मुसीबत में पड़ जाते।

कई कर्मचारियों ने प्रत्यक्ष विवरण दिया कि दबाव ने उन पर किस तरह का असर  डाला है। उन्होंने कहा कि उन्हें तथा उनके सहकर्मियों को शॉर्टकट अपनाने के लिए मजबूर होना पड़ा। उत्तर प्रदेश स्थित एक ग्रामीण शाखा के प्रमुख ने कहा कि जब ग्राहकों के खातों में किसी और का मोबाइल नंबर जोड़कर दबाव में मोबाइल बैंकिंग एक्टिवेट की जाएगी तो सहमति प्रपत्र कैसे उपलब्ध होंगे?

उसी राज्य के एक अन्य अधिकारी ने इस रिपोर्टर को ऑडिटिंग के दिन कॉल कर अपना गुस्सा व्यक्त किया । उन्होने कहा  कि उनकी शाखा में कर्मचारी असहाय होकर न केवल ग्राहकों के फॉर्म भर रहे थे, बल्कि उन पर ग्राहकों के जाली हस्ताक्षर भी कर रहे थे।

बैंक ऑफ बड़ौदा कर्मचारी संघ (कर्नाटक) ने 30 जुलाई को बैंक के मैनेजिंग डायरेक्टर और सीईओ को भेजे गए अपने पत्र में इन चिंताओं को उठाया था। इसमें कहा गया था: “हम इस इंटरनल ऑडिट से अचरज में हैं क्योंकि ये सभी विचलन ब्रांच मैनेजर के मौखिक निर्देशों पर और रीजनल अधिकारियों की जानकारी में क्लर्कों ने की हैं। और यही लोग ऑडिटिंग भी कर रहे हैं। यह संभव है कि इस ऑडिट के दौरान निचले स्तर के पदाधिकारियों और विशेष रूप से क्लर्क के स्तर के कर्मचारियों पर दोष मढ़ने के लिए कई रिकॉर्ड बनाए या नष्ट किए जा सकते हैं।”

पत्र में कहा गया था कि यूनियन ने लंबे समय से मोबाइल बैंकिंग और अन्य अनियमितताओं के मुद्दों पर प्रबंधन का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की थी, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।

एक बैंक कर्मचारी ने कहा, "जो लोग इस गड़बड़ी के लिए जिम्मेदार हैं, उन्हें जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।" "यहां लंबे समय से तानाशाही चल रही है।"

द रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने एक ईमेल में आरबीआई से उसकी कार्रवाई के बारे में पूछा लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। कलेक्टिव ने आरबीआई के पर्यवेक्षण विभाग से जेसुदास प्रदीप जी को कॉल किया मगर उन्होंने इस आधार पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया कि वह मीडिया से बात करने के लिए अधिकृत नहीं हैं। बैंक ऑफ बड़ौदा ने भी आंतरिक ऑडिट और उसके निष्कर्षों के बारे में द रिपोर्टर्स कलेक्टिव के सवालों का जवाब नहीं दिया।