फरीदाबाद, नई दिल्ली: भारत में बाबा रामदेव को एक ऐसे योग गुरु के रूप में जानता है जिन्होंने भौतिक और आध्यात्मिक दोनों क्षेत्रों में व्यावसायिक उद्यमों से अपनी संपत्ति बनाई है। लेकिन दिल्ली की सीमा से लगे अरावली रेंज के जंगलों में स्थित मांगर गांव में रामदेव को रियल एस्टेट दिग्गज के रूप में जाना जाता है।

"बाबाजी ने अपनी कंपनियों के माध्यम से मांगर में कई भूखंड खरीदे हैं," एक स्थानीय प्रॉपर्टी डीलर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया। "अलग-अलग कंपनियों ने यहां जमीन खरीदी है। हम जानते हैं वे सभी बाबाजी की (कंपनियां) हैं क्योंकि जो डीलर खरीदारी में शामिल थे, वह स्थानीय रूप से उनके (रामदेव के) लिए काम करने के लिए जाने जाते हैं।''

उस प्रॉपर्टी डीलर की बात सही थी। द रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने पाया गया कि पिछले एक दशक से पतंजलि समूह से जुड़ी कई फर्जी और गुप्त कंपनियां, हरियाणा के फरीदाबाद में स्थित मांगर में जमीन खरीद और बेच रही हैं। इनमें से ज्यादातर कंपनियां रामदेव के करीबी व्यापारिक सहयोगियों और परिवार के सदस्यों द्वारा नियंत्रित और प्रबंधित हैं।

कॉर्पोरेट समूहों के लिए शेल कंपनियों का प्रयोग नई बात नहीं है। इन कंपनियों का अस्तित्व केवल कागज़ पर होता है। इनका प्रयोग कई बार वैध लेकिन ज्यादातर अवैध उद्देश्यों के लिए जाता है। शेल कंपनियों का प्रयोग लेनदेन के वास्तविक लाभार्थियों को छिपाने, टैक्स का भुगतान न करने या अवैध रूप से टैक्स से बचने के लिए होता है। इनकी मदद से अवैध रूप से अर्जित धन को लेनदेन की कई परतों में छिपाकर, बैंकिंग चैनलों के माध्यम से वैधता का आवरण दिया जा सकता है। अमीर लोग अक्सर ऐसी कंपनियों का उपयोग अपने पैसे को नागरिकों और सरकारों से छिपाने के लिए करते हैं। भारत सरकार ने संसद में कहा था कि पिछले तीन वर्षों में 1.2 लाख से अधिक ऐसी शेल कंपनियां को बंद की गईं हैं, जिन्होंने अपने वित्तीय विवरण दाखिल नहीं किए थे।

लेकिन शायद पतंजलि ग्रुप से संबद्ध शेल कंपनियां सरकार की नज़रों से बच गईं। हमने जांच में पाया कि पतंजलि समूह से जुड़ी इनमें से कुछ कंपनियों ने आधिकारिक रूप से जैसा दावा किया था, वैसा कोई भी सामान बनाने या बेचने का काम नहीं किया। इसके बजाय, पतंजलि समूह ने इन फर्जी कंपनियों का इस्तेमाल अरावली पर्वत श्रृंखला के जंगलों में स्थित मांगर गांव में जमीन के बड़े हिस्से को खरीदने के लिए किया। अरावली पर्वत श्रृंखला दिल्ली के फेफड़ों का काम करती है।

मांगर की जमीनों की बिक्री से प्राप्त आय को इन शेल कंपनियों ने पतंजलि की अन्य कंपनियों की ओर मोड़ दिया, जिन्होंने अरावली पहाड़ियों के दूसरे हिस्सों में और जमीनें खरीदीं।

हमने अपनी जांच में डेढ़ दशक से अधिक समय के कॉर्पोरेट और भूमि रिकॉर्ड खंगाले। इन रिकार्ड्स की मदद से हमने संदिग्ध शेल कंपनियों के एक जाल को उजागर किया और उनके स्वामित्व और निवेशकों का पता लगाया। इन कड़ियों को जोड़कर हम पहुंचे जमीन के असली खरीदारों, यानी पतंजलि साम्राज्य, तक। रामदेव ने यह साम्राज्य तब खड़ा किया जब वह नरेंद्र मोदी के काला धन समाप्त करने के वादे का जोरदार समर्थन कर रहे थे। उन्होंने इसके समर्थन में भारी प्रचार भी किया और वह 2011-14 के बीच अन्ना हजारे के नेतृत्व वाले भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के साथ भी खड़े दिखे।

रियल एस्टेट में काम करने वालों को मांगर और अरावली के अन्य हिस्से आकर्षित करते हैं। फ़रीदाबाद, जहां मांगर स्थित है, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र कहे जाने वाले उभरते शहरों का एक हिस्सा है। इस कारण से यह बिल्डरों के लिए फायदेमंद है। फ़रीदाबाद में वनभूमि के बड़े हिस्से को संरक्षण कानूनों से बाहर रखा गया है। इससे रामदेव के पतंजलि समूह जैसी रियल-एस्टेट से जुड़ी कंपनियों को इन्हें खरीदने के अवसर मिल रहे हैं।

लेकिन गैर-संरक्षित वन भूमियों के संरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश ने अरावली के इन हिस्सों को रियल-एस्टेट डेवलपर्स से सुरक्षा प्रदान की थी। सुप्रीम कोर्ट के 1996 के ऐतिहासिक आदेश के अनुसार, भले ही सरकारी रिकॉर्ड में किसी भूखंड को वन के रूप में मान्यता नहीं दी गई हो, लेकिन अगर वह वन की परिभाषा के तहत आता है तो इसे संरक्षित किया जाएगा, भले ही उस भूखंड का मालिक कोई भी हो।

सालों से व्यापारी मांगर और दिल्ली के निकट अरावली के गैर-संरक्षित हिस्से की वनभूमि को हड़पने की कोशिश करते रहे हैं।

हालांकि पतंजलि ने मांगर में जमीन हरियाणा और केंद्र में भाजपा के सत्ता में आने से पहले खरीदी थी, द कलेक्टिव द्वारा दस्तावेजों की समीक्षा से पता चलता है कि 2014 के बाद की सरकारों ने अरावली पर्वतमाला में समूह की व्यावसायिक संभावनाओं को बेहतर बनाया है।

केंद्र सरकार की ओर से भी रामदेव के लिए हाल ही में अच्छी खबर आई है। अगस्त 2023 में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए संरक्षण को प्रभावी रूप से कमजोर कर दिया। सरकार ने वन संरक्षण अधिनियम में संशोधन किया, जिससे मांगर और अरावली के अन्य हिस्सों जैसी वनभूमियों के लिए कानूनी संरक्षण समाप्त हो गया।

चूंकि अरावली में भूमि के बड़े हिस्सों को आधिकारिक तौर पर वनों के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया था, इस संशोधन ने तत्कालीन वन संरक्षण कानूनों के तहत उन्हें मिले संरक्षण को छीन लिया। परिणामस्वरूप, इन क्षेत्रों पर अब व्यावसायिक शोषण का खतरा है। हिंदुस्तान टाइम्स ने पहले ही रिपोर्ट किया है कि कैसे कई रियल एस्टेट कंपनियों के पास अरावली के जंगलों में जमीन है और उन्हें संशोधित वन संरक्षण अधिनियम से लाभ होगा।

हरियाणा के नवीनतम डिजिटल भूमि रिकॉर्ड और कॉर्पोरेट फाइलिंग की समीक्षा से पता चलता है कि पतंजलि समूह के पास एक दर्जन कंपनियों और एक ट्रस्ट के माध्यम से मांगर गांव की 123 एकड़ से अधिक जमीन है। 

यह संख्या और बड़ी हो सकती है। यह रिपोर्ट प्रकाशित होने तक हम मांगर में पतंजलि समूह के सभी रियल एस्टेट सौदों का पता नहीं लगा सके, क्योंकि भूमि की बिक्री पर रिकॉर्ड तुरंत संशोधित नहीं किए जाते हैं।

इलस्ट्रेशन: पतंजलि फ़िर्मस और ट्रस्ट के पास मांगर में कितनी ज़मीन है, हरियाणा डिजिटल भूमि रिकॉर्ड के अनुसार।

द रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने इन सभी कंपनियों के पंजीकृत ईमेल पतों पर विस्तृत प्रश्नावली भेजी, उनकी कॉपी पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर (सीओओ) को भी भेजी गई। बाबा रामदेव के प्रवक्ता और आस्था टीवी के राष्ट्रीय प्रमुख एस के तिजारावाला को भी सभी मेल भेजे गए। आचार्य बालकृष्ण को भी प्रश्नावली भेजी गई थी। 

लगभग इन सभी कंपनियों से हमें एक जैसे, रटे-रटाए जवाब मिले। शेल कंपनियों ने अपने जवाब की प्रति पतंजलि आयुर्वेद के सीओओ और तिजारावाला को भी भेजी, जिससे यह सिद्ध हो गया कि यह सभी संस्थाएं रामदेव के पतंजलि समूह को रिपोर्ट करती हैं और रामदेव के दोस्तों और परिवार द्वारा चलाई जाने वाली स्वतंत्र संस्थाएं नहीं हैं।

सबकी प्रतिक्रिया संक्षिप्त और सरल थी: हमने कुछ गलत नहीं किया है।

शेल कंपनियों का खेल

पूरे मांगर में प्लॉट खरीदने के लिए पतंजलि की शेल कंपनियों ने एक ही तरह की कार्यप्रणाली का पालन किया। द कलेक्टिव ने ऐसी ही एक फर्म, पतंजलि कोरुपैक प्राइवेट लिमिटेड में इसकी स्थापना से लेकर अबतक आए पैसे और उसके खर्च का पता लगाया। यह भी पता लगाया कि मांगर के जंगलों में जमीन खरीदने और बेचने के लिए इन पैसों का इस्तेमाल कैसे किया गया था।

कोरुपैक नामक कंपनी की स्थापना 2009 में बाबा रामदेव के भाई राम भरत और निकटतम सहयोगी आचार्य बालकृष्ण ने की थी। बालकृष्ण पतंजलि आयुर्वेद के सह-संस्थापक और प्रबंध निदेशक भी हैं। दोनों ने दावा किया था कि कंपनी पैकेजिंग सामग्री के निर्माण के लिए बनाई गई है। दोनों ने पूंजी के रूप में 1 लाख रुपए  कंपनी में लगाकर इसके शेयर खरीदे। कंपनी का पंजीकरण हरिद्वार, उत्तराखंड में किया गया, जहां रामदेव का पूरा साम्राज्य है। नवीनतम कॉर्पोरेट फाइलिंग के अनुसार, कंपनी का 92% हिस्सा बालकृष्ण के पास और बाकी भरत के पास है। 

लेकिन पिछले 12 सालों में कंपनी ने एक रुपए का भी व्यवसाय उस क्षेत्र में नहीं किया है जिसके लिए इसकी स्थापना की गई थी। इसके बजाय, यह फर्म में लगाए गए पैसों से मांगर में जमीन खरीद और बेच रही है।

कंपनी अपनी मुख्य व्यावसायिक गतिविधि, यानी पैकेजिंग सामग्री के निर्माण और व्यापार के लिए कानूनी तौर पर जमीन पट्टे पर ले सकती है या खरीद सकती है, लेकिन रियल एस्टेट व्यवसाय के लिए नहीं। इस मामले में, कंपनी ने अपना मुख्य व्यवसाय नहीं किया, बल्कि केवल मांगर की भूमि का सौदा किया।

कोरुपैक के निगमन के साल भर बाद ही इसका बैंक खाता बढ़ने लगा। 2010 में आचार्य बालकृष्ण ने कंपनी को 2.99 करोड़ रुपए दिए थे। जल्द ही, गंगोत्री आयुर्वेद प्राइवेट लिमिटेड से 2.42 करोड़ रुपए और आरोग्य हर्ब्स (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड से 5.6 लाख रुपए की अग्रिम किश्तें आ गईं। इन दोनों कंपनियों के सबसे अधिक शेयर बालकृष्ण के पास हैं। आरोग्य हर्ब्स के पास मांगर में ही 28 एकड़ जमीन है।

पतंजलि कोरुपैक द्वारा वित्तीय वर्ष 2010 की फाइलिंग का स्क्रीनग्रैब, जिसमें आचार्य बालकृष्ण और पतंजलि से जुड़ी दो कंपनियों से प्राप्त शेयर आवेदन राशि को दिखाया गया है।

वास्तव में, पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के प्रबंध निदेशक और बाबा रामदेव के दाहिने हाथ बालकृष्ण ने कोरुपैक को 5 करोड़ रुपए से अधिक दिए थे। उन्होंने दावा किया कि यह पैसा अग्रिम राशि के रूप में दिया गया था जिसके एवज में कोरुपैक बालकृष्ण को सीधे तौर पर और उनकी दो अन्य शेल कंपनियों के माध्यम से अतिरिक्त शेयर जारी करेगी।

वास्तविक मामलों में 'पैसे देकर शेयर खरीदने' की यह प्रक्रिया बहुत सामान्य होती है और कुछ हफ़्तों तक ही चलती है। लेकिन बालकृष्ण और इन दो अन्य शेल कंपनियों को कोरुपैक में लगाए गए उनके कथित 'शेयर एप्लिकेशन मनी' के बदले सालों तक शेयर नहीं मिले।

यदि कोई कंपनी अग्रिम धनराशि के बदले में शेयर जारी करने में देरी करे तो इसे खतरे की घंटी माना जाता है। और ऐसे लेनदेन को संदिग्ध माना जाता है। कंपनी अधिनियम, 2013 में इस खामी को दूर करते हुए अनिवार्य कर दिया गया कि शेयर 60 दिनों के भीतर आवंटित किए जाने चाहिए या फिर तुरंत अग्रिम राशि वापस कर दी जानी चाहिए। शेयर एप्लीकेशन मनी के नाम पर अवैध रूप से एडवांस लेने पर 2 करोड़ रुपए तक का जुर्माना लगता है।

कोरुपैक के मामले में शेयर कभी आवंटित नहीं किए गए। धीरे-धीरे, यह शेयर आवेदन राशि या तो "अन्य वर्तमान देनदारियों" में स्थानांतरित कर दी गई या समाप्त होती चली गई।

पतंजलि की दूसरी कंपनियों ने कोरुपैक को कुछ असुरक्षित (बिना किसी कोलैटरल के दिए जाने वाले) लोन भी दिए। चेनीना इम्पेक्स प्राइवेट लिमिटेड, प्ररेखा एक्ज़िम प्राइवेट लिमिटेड और स्मिताशा इम्पेक्स प्राइवेट लिमिटेड ने इसे 6-6 लाख रुपए दिए।

पतंजलि कोरुपैक ने अपने रिकार्ड्स में माना है कि यह कंपनियां "संबंधित पार्टियां" हैं जिनमें "प्रमुख प्रबंधन कर्मियों या उनके रिश्तेदारों का महत्वपूर्ण प्रभाव है"। इसका मतलब है कि यह भी बाबा रामदेव के व्यापारिक साम्राज्य की ऐसी कंपनियों में थीं जिनके बारे में ज्यादा लोग नहीं जानते थे।

नवीनतम कॉर्पोरेट फाइलिंग के ज़रिए हम यह भी पुष्टि कर सकते हैं कि इन तीनों कंपनियों के पास रामदेव का आस्था चैनल चलने वाली कंपनी आस्था ब्रॉडकास्टिंग नेटवर्क लिमिटेड के शेयर हैं। 

पतंजलि नेटवर्क द्वारा बहुत सा पैसा मिल जाने के कारण कोरुपैक एक रियल एस्टेट डीलर बन गई। साल भर के भीतर, मांगर में इसकी जमीनें 59.74 एकड़ से बढ़कर 70.92 एकड़ हो गईं। रिकॉर्ड बताते हैं कि इन्हें कुल 4.9 करोड़ रुपए में खरीदा गया था।

पतंजलि की वित्तीय वर्ष 2011 की फाइलिंग का स्क्रीनग्रैब, जिसमें उसकी लैंड होल्डिंग दिखाई गई है।

कोरुपैक को पतंजलि की संस्थाओं से भारी मात्रा में धन मिलना जारी रहा, जिनमें पतंजलि परिवहन, देवम आयुर्वेद और दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट, ग्रीन एप्पल सिक्योरिटी सिस्टम्स, पतंजलि फूड और हर्बल पार्क आदि कंपनियां शामिल थीं। इनमें से कुछ कंपनियों के रिकॉर्ड स्पष्ट रूप से बताते हैं कि कोरुपैक को पैसा जमीन खरीदने के लिए दिया गया था, न कि किसी ऐसे व्यवसाय के लिए जिसे करने का कंपनी ने हमेशा दावा किया था।

कुल मिलाकर, वित्त वर्ष 2011 के अंत तक, कंपनी ने अग्रिम और 'शेयरों के लिए आवेदन राशि' के रूप में 6.74 करोड़ रुपए जुटा लिए थे।

अगले वित्तीय वर्ष में कंपनी ने अपनी ज़मीनें बेचना शुरू कर दिया। रिकार्ड्स से पता चलता है कि इसने 15.16 करोड़ रुपए कमाए, जिनसे इसने उपरोक्त तीन कंपनियों से लिए गए असुरक्षित कर्ज का भुगतान किया। कॉर्पोरेट रिकार्ड्स से हमें यह पता नहीं चल सकता कि पतंजलि की इस शेल कंपनी को इन भूखंडों की बिक्री से कितना फायदा हुआ। 

पतंजलि का शेल कंपनियों का यह खेल चलता रहा, किसी कंपनी में पैसा जमा करना और फिर उसे अलग-अलग संस्थाओं में स्थानांतरित करना। इस पूरे खेल के दौरान कंपनी जांच से बचती रही।

एक अन्य कंपनी, एबीसी ग्लोबल प्राइवेट लिमिटेड ने भी कोरुपैक को एक करोड़ रुपए का असुरक्षित लोन दिया। वहीं पांच कंपनियों को कोरुपैक ने 8.8 करोड़ रुपए की अग्रिम राशि दी। इनमें से एक कंपनी थी गौरीसुता बिल्डिंग सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड, यह मांगर की जमीनों का सौदा करती है और पतंजलि कॉर्पोरेट साम्राज्य का ही हिस्सा है।

आने वाले सालों में इन संदिग्ध अग्रिम राशियों से मिली जमीनें बेचकर कोरुपैक ने जो पैसा कमाया वह उसने पतंजलि समूह की अन्य कंपनियों में निवेश किया। उदाहरण के लिए, वित्तीय वर्ष 2013 में कंपनी ने संस्कार इंफो टीवी प्राइवेट लिमिटेड के 60,000 शेयर 90 लाख रुपए में खरीदे। संस्कार इन्फो टीवी लोकप्रिय संस्कार टीवी चैनल चलाता है। इसने 'शेयर एप्लीकेशन एडवांस' के नाम पर आस्था भजन ब्रॉडकास्टिंग प्राइवेट लिमिटेड को भी पैसे दिए। इसी तरह, वित्तीय वर्ष 2015 में कोरुपैक ने पतंजलि आयुर्वेद के 33,119 शेयर 51.47 लाख रुपए में खरीदे।

कोरुपैक की वित्तीय वर्ष 2015 की फाइलिंग का स्क्रीनग्रैब, जिसमें पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड और वैदिक आस्था भजन ब्रॉडकास्टिंग प्राइवेट लिमिटेड में किए गए निवेश को दर्शाया गया है।

कंपनी ने सबसे हालिया कॉर्पोरेट फाइलिंग वित्तीय वर्ष 2021 में की, जिससे पता चलता है कि इस उसने इस तरह का लेनदेन जारी रखा, लेकिन अपने मुख्य व्यवसाय, यानी पैकेजिंग सामग्री का कोई काम नहीं किया। फिर भी, इसने 15.57 करोड़ रुपए का रिजर्व जमा कर लिया था। नवीनतम रिकॉर्ड से यह भी पता चलता है कि कंपनी के पास मांगर में 1.28 एकड़ जमीन है, जिससे यह संभावित रूप से और अधिक मुनाफा कमा सकती है।

हमने पतंजलि कोरुपैक को एक विस्तृत प्रश्नावली भेजकर पूछा था कि क्यों उसने एक दशक से अधिक समय तक कोई वास्तविक व्यवसाय नहीं किया, और क्यों इसके बजाय मांगर में जमीन खरीदने और बेचने के लिए पतंजलि की कंपनियों में पैसा स्थानांतरित किया? कंपनी ने एक सामान्य से जवाब में कहा:

“पतंजलि कोरुपैक प्राइवेट लिमिटेड ने सभी निवेश कानून में दिए गए नियमों के अनुसार किए हैं। इसके अलावा, हमने पूर्ण अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए भूमि अधिग्रहण को नियंत्रित करने वाले लागू कानूनों और विनियमों का सावधानीपूर्वक पालन किया है। भूमि का अधिग्रहण कानूनी फ्रेमवर्क के अनुरूप किया गया है, और सभी प्रक्रियाओं का निष्पादन कानूनी आवश्यकताओं पर सावधानीपूर्वक ध्यान देते हुए किया गया है।”

प्रतिक्रिया में स्पष्ट रूप से पूछे गए प्रश्नों को नजरअंदाज करते हुए कहा गया, "हम अपने सभी व्यावसायिक प्रयासों में वैधता और नैतिक आचरण के उच्चतम मानकों को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं।"

(भाग 2: पतंजलि कोरुपैक, पतंजलि समूह की शेल कंपनियों का केवल एक उदहारण है। यह कंपनियां संदिग्ध रियल एस्टेट डीलरों के रूप में काम करती हैं, और बाबा रामदेव के साम्राज्य की बड़ी और अधिक प्रसिद्ध कंपनियों के साथ पैसे का लेनदेन करती हैं।)

द रिपोर्टर्स कलेक्टिव के पूर्व प्रशिक्षु अग्गम वालिया ने इस स्टोरी के शोध और रिपोर्टिंग में योगदान दिया है।