सुगनू: 58 वर्षीय हाई स्कूल शिक्षक रतन कुमार सिंह ने कभी नहीं सोचा था कि वह हथियारबंद लड़ाकों, या उनके अनुसार "क्रांतिकारियों" को देखकर खुश होंगे। लेकिन पिछले साल 28 मई को सिंह ने अपने शहर सुगनू में उनका स्वागत किया, जो भारत के पूर्वोत्तर कोने में म्यांमार की सीमा से लगे राज्य मणिपुर में स्थित है।

लगभग तीन हफ्ते तक इस छोटे से शहर ने राज्य के बाकी हिस्सों में मैतेई समुदाय और कुकी-ज़ो आदिवासियों के बीच 3 मई से चल रही जातीय हिंसा से खुद को बचाए रखा था। लेकिन उस दिन इस जगह 12 लोग गोलियों से मारे गए थे, जो आसपास के पहाड़ी इलाकों से और कुकी-ज़ो समुदाय के प्रभुत्व वाले एक शिविर से चलाई गई थीं।

“फिर उन्होंने हमारे घरों को जलाना शुरू कर दिया। हमारी तरफ से पुलिस और सिविल वालिंटियर्स समेत अन्य लोगों ने जवाबी गोलीबारी की। लेकिन जब क्रांतिकारी आए तभी हम दूसरे पक्ष पर काबू पाने में सफल हुए,” सिंह ने द कलेक्टिव को बताया।

"हम गोली चलाने के पक्ष में कभी नहीं थे... लेकिन जब हमने उस दिन क्रांतिकारियों और अन्य मैतेई वालिंटियर्स को आते देखा, तो हम (खुशी से) रो पड़े, क्योंकि हम जान चुके थे कि हम सुरक्षित रहेंगे।"

जो विद्रोही सुगनू की रक्षा के लिए आए थे, वे भी उन्हीं की तरह जातीय रूप से मैतेई थे।

ग्यारह महीनों से चल रहे इस संघर्ष में 219 लोग मारे जा चुके हैं, 1,100 घायल हुए हैं, 60,000 लोग विस्थापित हुए हैं और राज्य दो जातीय क्षेत्रों में विभाजित हो गया है। क्षेत्रीय प्रभुत्व के लिए ग्रामीण इलाकों में सशस्त्र समूह अत्याधुनिक हथियारों और विस्फोटकों का उपयोग करके लड़ाई लड़ रहे हैं, जबकि केंद्रीय सरकार और राज्य के 60,000 से अधिक सशस्त्र बल अब तक हिंसा को स्थायी रूप से ख़त्म करने में विफल रहे हैं।

हाई स्कूल के शिक्षक रतन कुमार सिंह को तब राहत मिली जब सशस्त्र लड़ाके उनकी रक्षा के लिए उनके गाँव पहुँचे [अंगना चक्रवर्ती/TRC]

दो साल पहले जब राज्य के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह, जो स्वयं मैतेई समुदाय से हैं, दोबारा चुनाव लड़ रहे थे, तो प्रधानमंत्री और दक्षिणपंथी भारतीय जनता पार्टी के नेता नरेंद्र मोदी ने उनके प्रचार में एक रैली की थी, जिसमें उन्होंने अलग-अलग समुदायों के बीच की खाई पाटने का दावा किया था। लेकिन मौजूदा हिंसा और हत्या की हर घटना ने उनके दावों की असलियत उजागर की है।

मणिपुर, 'ब्लॉकेड स्टेट' से 'इंटरनेशनल ट्रेड' के लिए रास्ते देने वाला स्टेट बन गया है। हमारी सरकार ने 'हिल' और 'वैली' के बीच खोदी गई खाई को पाटने के लिए…. अभियान चलाए हैं," उक्त रैली में मोदी ने कहा। 

मोदी उस ऐतिहासिक भेदभाव का जिक्र कर रहे थे जो कुकी समुदाय सहित पहाड़ियों पर रहने वाले आदिवासी समुदायों द्वारा महसूस किया जाता है। वह मानते हैं कि मैतेई समुदाय आर्थिक रूप से उनसे अधिक समृद्ध है और छोटी घाटियों और राजधानी इंफाल में बहुसंख्यक हैं। मोदी ने कहा कि सिंह की नीतियों ने पहाड़ी और घाटी समुदायों के बीच संबंधो को गहरा किया है।   

उस समय यह सही लग रहा था। पहाड़ियों के कई हिस्सों में सिविल सोसाइटी और कुकी-ज़ो समुदाय के विद्रोही समूहों ने सिंह के लिए प्रचार किया, और आदिवासी समुदाय के शीर्ष राजनेता ने उनकी पार्टी से टिकट लेने की इच्छा जताई। 

सिंह ने चुनाव में बड़ी जीत हासिल की। 2022 से शुरू होने वाले उनके दूसरे कार्यकाल में भाजपा ने कुकी बहुल पहाड़ी निर्वाचन क्षेत्रों में 10 विधानसभा सीटों में से पांच पर जीत हासिल की। सितंबर 2022 में जनता दल-यूनाइटेड के टिकट पर जीतने वाले कुकी विधायकों में से दो के सत्तारूढ़ दल में शामिल होने के बाद, इन निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा विधायकों की संख्या बढ़कर सात हो गई। सात में से दो विधायक सिंह के मंत्रिमंडल में शामिल हुए।

हालांकि, दो साल बाद ही मोदी और सिंह के दावे धूल-धूसरित हो गए, जब मणिपुर में कुकी और मैतेई लोगों के बीच अंतहीन जातीय हिंसा देखी गई। यह शायद 21वीं सदी में देश में सबसे लंबे समय तक चलने वाली जातीय हिंसा है।

इस श्रृंखला के पहले भाग में बताया गया था कि कैसे ग्यारह महीनों से अधिक समय में यह संघर्ष गहराता जा रहा है, और जातीय आधार पर बंटे सशस्त्र समूहों का पुनरुत्थान हो रहा है। पहले भाग में असम राइफल्स की एक प्रेजेंटेशन का भी ज़िक्र किया गया था, जिसमें संघर्ष भड़काने के लिए जिम्मेदार विभिन्न कारणों को सूचीबद्ध किया था: म्यांमार से अवैध अप्रवास, कुकीलैंड की मांग, राजनीतिक तानाशाही और मुख्यमंत्री बीरेन सिंह की महत्वाकांक्षा और नशीले पदार्थों (ड्रग्स) के खिलाफ उनका युद्ध आदि।

ड्रग्स के खिलाफ युद्ध पहले राजनैतिक रूप से महत्वपूर्ण था, बाद में इसने संघर्ष को बढ़ावा देने में भी भूमिका निभाई। श्रृंखला का यह अंतिम भाग इस बात की पड़ताल करता है कि नशीली दवाओं के व्यापार और उस पर राजनीति ने मणिपुर को कैसे हिलाकर रख दिया है। 

ड्रग्स के खिलाफ युद्ध

2018 में मुख्यमंत्री के रूप में अपने पहले कार्यकाल में ही बीरेन सिंह ने ड्रग्स के खिलाफ लड़ाई का ऐलान किया। 

उन्होंने मीडिया को बताया, "म्यांमार से लगी अंतर्राष्ट्रीय सीमा के पास के इलाकों में हजारों हेक्टेयर भूमि का उपयोग अफीम (पॉपी) की खेती के लिए किया जाता है।"  

उन्होंने कहा कि खराब आर्थिक स्थिति, रोज़गार की कमी और आसानी से नशीले पदार्थों की उपलब्धता के कारण राज्य में ड्रग्स के आदी लोगों की संख्या बढ़ गई है।

उनकी बात गलत नहीं थी। मणिपुर कुख्यात 'गोल्डन ट्रायंगल' के पास स्थित है। 'गोल्डन ट्रायंगल' दक्षिण पूर्व एशिया का वह इलाका है जिसके अंदर गृहयुद्ध से ग्रस्त म्यांमार भी आता है। ड्रग्स और अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के अनुसार यह क्षेत्र "दुनिया में मादक पदार्थों की तस्करी के सबसे बड़े कॉरिडोर्स में से एक" है। संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि इस क्षेत्र से स्मगल किए गए हेरोइन, अफ़ीम और मेथामफेटामाइन जैसी सिंथेटिक दवाएं "पूरे एशिया पैसिफिक तक पहुंचती हैं"। 

मणिपुर में भी इस व्यापार के फैल जाने का पुराना इतिहास है।

"पिछले 15 सालों में मणिपुर में नशीली दवाओं का व्यापार तेजी से बढ़ा है। [हाल ही में] अमेरिका, अन्य पश्चिमी देशों और संयुक्त राष्ट्र ने म्यांमार और 'गोल्डन ट्रायंगल' को निशाने पर लेना शुरू किया है,'' 2017 में सेवानिवृत्त हुए मैतेई लेफ्टिनेंट जनरल हिमालय सिंह ने मुझे बताया।

उन्होंने आगे कहा, “परिणामस्वरूप, यह गोल्डन ट्रायंगल पश्चिम की ओर [मणिपुर में] फैलने लगा। सशस्त्र समूहों ने इसमें आसानी से पैसा कमाने का तरीका देखा और इस फैलाव को बढ़ावा दिया।''

वह विभिन्न समुदायों के सशस्त्र विद्रोही समूहों की बात कर रहे थे, (ग्राफिक्स और भाग 1 देखें), जिसमें कुकी और मैतेई लड़ाके भी शामिल हैं। पूरे मणिपुर में इनकी संख्या तेजी से बढ़ रही है और यह म्यांमार से लगी खुली सीमाओं के आर-पार ड्रग्स के व्यापार में शामिल हैं।

कई रिपोर्ट्स के अनुसार, पिछले दो दशकों में ड्रग्स के व्यापार में वृद्धि देखी गई है।

“90 और 80 के दशक के दौरान मणिपुर में केवल कुछ खास जगहों पर ड्रग्स बेचे जाते थे। अब यह पूरे राज्य भर में हर जगह मिलते हैं," 3.5 कलेक्टिव के सह-संयोजक मैबाम जोगेश ने कहा। 3.5 कलेक्टिव ड्रग्स और शराब की समस्या के खिलाफ अभियान चलाने वाले 18 सिविल सोसाइटी समूहों का एक गठबंधन है।

जोगेश राज्य में ड्रग्स पीड़ितों के सबसे पुराने सामुदायिक संगठनों में से एक यूज़र्स सोसाइटी फॉर इफेक्टिव रिस्पांस के भी प्रमुख हैं। वह बताते हैं कि फील्ड पर मौजूद उनके कार्यकर्ताओं ने 2006 में ही मणिपुर की पहाड़ियों में अफीम की खेती देखी थी।

उन्होंने कहा, "पिछले 6-7 सालों में राज्य के कई हिस्सों, यहां तक ​​कि इंफाल में भी ड्रग्स के कारखाने खुल गए हैं"। स्थानीय रूप से निर्मित कच्चा हेरोइन, जिसे थम मोरोक कहा जाता है -- मैतेई भाषा में जिसका अर्थ होता है नमक और मिर्च -- म्यांमार में उत्पादित 'नंबर 4' हेरोइन की जगह ले चुका है।

दिसंबर के मध्य में “थम मोरोक की कीमत 500 रुपए प्रति ग्राम थी। इसकी तुलना में, 20 साल पहले आप 'नंबर 4' म्यांमार से 1,200 रुपए प्रति ग्राम में खरीद सकते थे,'' जोगेश ने कहा।

परिणामस्वरूप, ड्रग्स का सेवन करने वालों की संख्या भी बढ़ी।

जून 2023 में, मणिपुर पुलिस के तत्कालीन नारकोटिक्स और सीमा मामलों के अधीक्षक और बिष्णुपुर जिले के वर्तमान पुलिस अधीक्षक के. मेघचंद्र ने मुझसे कहा था, “पहाड़ियों में खेती होती है। अब घाटी में, विशेष रूप से पहाड़ी क्षेत्रों से सटे थौबल और बिष्णुपुर जिलों में, बहुत सारी प्रोसेसिंग यूनिट बना दी गई हैं।" "[ब्राउन शुगर की] प्रोसेसिंग यूनिटें ज्यादातर मुस्लिम इलाकों में हैं," मेघचंद्र ने कहा। उन्होंने आगे कहा, "इंफाल में मैतेई इसके ट्रांसपोर्टर हैं।"

मेघचंद्र ने जो आंकड़े दिए उनके अनुसार, 2017 के बाद से ड्रग्स के मामलों में की गई 2,518 गिरफ्तारियों में से 873 "कुकी-चिन" लोग थे, 1,083 मुस्लिम थे, 381 मैतेई थे और 181 "अन्य" थे।

जून 2023 में ही कुकी-ज़ो बहुल जिले चूड़ाचांदपुर के एक कोने में एक झोपड़ीनुमा घर के अंदर मेरी मुलाकात कुछ अफीम की खेती करने वालों से हुई। 

“मैंने 2014 में अफीम की खेती शुरू की क्योंकि उन दिनों एक किलो मिर्च 50 से 60 रुपए तक मिलती थी। मैं उस पर निर्भर नहीं रह सकता था। जीवन-यापन की लागत बहुत अधिक है और मेरे सात बच्चे हैं,'' उनमें से एक ने नाम न बताने की शर्त पर कहा।   

आज, हर साल लगभग 700 अरब रुपए ($8.43 बिलियन) का ड्रग्स का कारोबार होता है। लेकिन सालाना केवल 20 से 25 अरब रुपए ($240 मिलियन से $300 मिलियन) के ड्रग्स ही जब्त किए जाते हैं, जो 5 प्रतिशत से भी कम है, लेफ्टिनेंट जनरल कोन्सम हिमालय सिंह ने कहा।

सरकार आधिकारिक तौर पर ऐसे अनुमान जारी नहीं करती है, इसलिए उपरोक्त आंकड़ों को सत्यापित करना हमारे लिए संभव नहीं था। लेकिन फरवरी 2020 में अधिकारियों ने कहा था कि ढाई साल में सरकार ने 20 अरब रुपए ($240m) से अधिक के ड्रग्स जब्त किए थे और मणिपुर में पांच ड्रग्स बनाने वाली अस्थायी फैक्ट्रियों का भंडाफोड़ किया था।

लगभग 27 लाख लोगों की आबादी और करीब 400 अरब रुपए ($ 4.82 बिलियन) की सालाना अर्थव्यवस्था वाले एक छोटे राज्य के लिए यह जब्ती बहुत बड़ी है। राज्यसभा में एक अतारांकित प्रश्न के उत्तर के अनुसार, 2021 और 2022 में देश भर में 1,728 किलोग्राम हेरोइन जब्त की गई। यदि 2021 में यूएनओडीसी द्वारा रिपोर्ट की गई हेरोइन की सामान्य खुदरा कीमत (1 किलोग्राम = $123,401.54) को लें तो जब्त की गई हेरोइन की कीमत 213.24 मिलियन डॉलर थी।

मुख्यमंत्री द्वारा ड्रग्स के खिलाफ युद्ध के ऐलान के पांच महीने बाद, उनकी पत्नी पर कुकी-ज़ो समुदाय के एक कथित ड्रग माफिया से संबंध रखने का आरोप लगाया गया था। यह दावा बॉर्डर ब्यूरो के नारकोटिक्स और अफेयर्स की अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक थौनाओजम बृंदा ने किया था, जिन्होंने बाद में इस्तीफा दे दिया।

चित्रित थौनाओजम बृंदा ने मणिपुर के मुख्यमंत्री की पत्नी पर ड्रग किंगपिन के साथ संपर्क का आरोप लगाया [सोशल मीडिया]

मणिपुर उच्च न्यायालय में दायर एक विस्फोटक हलफनामे में, बृंदा ने मुख्यमंत्री पर आरोप लगाया की उन्होंने उनपर एक कथित 'ड्रग किंगपिन' -- भाजपा नेता और स्वायत्त जिला परिषद (एडीसी) के पूर्व प्रमुख लुखोसी ज़ोउ -- के खिलाफ मामले को रफा-दफा के लिए दबाव डाला था।

द रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने बृंदा का हलफनामा देखा है, जिसमें उन्होंने कहा था कि ज़ोउ के क्वार्टर पर छापे के बाद सुबह 4.595 किलोग्राम हेरोइन पाउडर और 280,200 याबा गोलियां (मेथम्फेटामाइन) बरामद होने की सूचना मिली थी, जिसके बाद उन्हें मणिपुर भाजपा के तत्कालीन उपाध्यक्ष असनीकुमार मोइरांगथेम का फोन आया था। मोइरांगथेम मैतेई समुदाय से हैं।

"उन्होंने मुझसे कहा कि गिरफ्तार एडीसी चेयरमैन सीएम की दूसरी पत्नी ओलिस (एसएस ओलिश) का चंदेल में दाहिना हाथ है और ओलिस इस गिरफ्तारी से गुस्से में थीं। सीएम ने आदेश दिया था कि गिरफ्तार एडीसी चेयरमैन की जगह उसकी पत्नी या बेटे को हिरासत में ले लिया जाए और उसे रिहा कर दिया जाए,'' बृंदा ने हलफनामे में लिखा।  

जमानत पर छूटने के बाद ज़ोउ अदालत में हाज़िर नहीं हुए। लेकिन बाद में वह सभी आरोपों से बरी कर दिए गए। बृंदा ने अपने हलफनामे में जिन-जिन लोगों का नाम लिया है, उन्होंने अदालतों के सामने और सार्वजनिक बयानों में ड्रग्स के व्यापार में अपनी भूमिका से इनकार किया है, और किसी को भी किसी भी अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया गया है।

उक्त आरोपों के बारे में द रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने मुख्यमंत्री कार्यालय के अधिकारी, एस.एस. ओलिश और असनीकुमार मोइरंगथेम को सवाल भेजे,  लेकिन उनका कोई उत्तर नहीं मिला।

बृंदा ने अपने हलफनामे में दावा किया था कि अधिकारियों ने केवल छोटे-मोटे लोगों को पकड़ा और "राजनैतिक संपर्क वाले हाई प्रोफाइल ड्रग माफियाओं और स्वयं राजनेताओं" को छोड़ दिया।

कुकी-बहुल पहाड़ी इलाके म्यांमार की सीमा पर हैं और मणिपुर के अन्य पहाड़ी हिस्सों और म्यांमार की सीमा से लगे अन्य क्षेत्रों की तरह ही, सीमावर्ती क्षेत्र का उपयोग ड्रग्स पहुंचाने के मार्ग के रूप में किए जाने के मामले दर्ज हुए हैं।

"इस स्तर पर व्यापार केवल राजनैतिक संरक्षण में ही चलाया जा सकता है। मणिपुर में राजनेता, व्यापारी और विद्रोही समूह इस व्यापार का हिस्सा हैं," क्षेत्र में खुफिया अभियानों से परिचित एक वरिष्ठ सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी ने मुझे बताया।

यह दुस्साहस तब है जब देश में सबसे अधिक अर्धसैनिक बल, सेना और खुफिया एजेंसियां मणिपुर में मौजूद हैं।

यह पूछे जाने पर कि क्या सुरक्षा कर्मियों पर ड्रग्स के व्यापार में शामिल होने का संदेह सच हो सकता है, लेफ्टिनेंट जनरल हिमालय सिंह ने कहा, "मैं किसी भी व्यक्ति को (संदेह से) बाहर नहीं रख सकता।"

उपरोक्त सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी ने भी बताया, "मोरे [म्यांमार से सटा सीमावर्ती शहर] सुरक्षा बलों द्वारा तस्करी, जबरन वसूली या लूट का एक महत्वपूर्ण बिंदु रहा है"।

द कलेक्टिव स्वतंत्र रूप से इस दावे की पुष्टि नहीं कर सका। लेकिन, 2022 में एक मणिपुर पुलिसकर्मी और असम राइफल्स के एक जवान को गुवाहाटी में 200 अरब रुपए ($2.4 बिलियन) मूल्य की प्रतिबंधित याबा गोलियों के साथ गिरफ्तार किया गया था। उस समय की सुर्ख़ियों के अनुसार, यह गोलियां मोरे से तस्करी कर लाई जा रही थीं।

हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि मौजूदा जातीय हिंसा का कारण किसी तरह से ड्रग्स के व्यापार में असंतुलन है, इस श्रृंखला के पहले भाग में हमने असम राइफल्स की एक प्रेजेंटेशन के आधार पर संघर्ष के तात्कालिक कारणों पर गौर किया था।

वास्तव में, मोरे जिला मैतेई और कुकी-ज़ो समुदायों के बीच हिंसा का सबसे हालिया बिंदु बन गया है, जहां दिसंबर के अंत से रुक-रुक कर लड़ाई जारी है। इस साल 17 जनवरी को यहां कुकी लड़ाकों और मणिपुर पुलिस कमांडोज़ के बीच 20 घंटे तक गोलीबारी चली थी।

फरवरी में भारत ने भारत-म्यांमार फ्री मूवमेंट रेजीम (एफएमआर) को खत्म कर दिया। इस व्यवस्था के तहत सीमा के 16 किलोमीटर के भीतर के निवासियों को बिना वीजा के, केवल बॉर्डर पास के आधार पर सीमा पार जाने की अनुमति थी। इस व्यवस्था का स्थानीय कुकी-ज़ो और नागा समूहों ने कड़ा विरोध किया था।

जैसे-जैसे मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के खिलाफ आरोप कमज़ोर होने लगे, उन्होंने 2022 में फिर से दावा किया कि ड्रग्स के खिलाफ उनकी लड़ाई अच्छी चल रही है। जनवरी 2022 में एक्स पर एक पोस्ट में मुख्यमंत्री ने कहा था कि सरकार ने पहाड़ों में 110 एकड़ अफीम की खेती को नष्ट कर दिया है।

एक साल बाद जब मई 2023 में हिंसा शुरू हुई, तो कई मैतेई सिविल सोसाइटी संगठनों ने ड्रग्स के कारोबार को सांप्रदायिक रंग दे दिया और दावा किया कि यह काफी हद तक कुकी समुदाय का व्यवसाय है। सोशल मीडिया पर बड़े पैमाने पर कुकी समुदाय को 'नार्को आतंकवादी' कहकर निशाना बनाया गया, जिसका प्रयोग धीरे-धीरे व्यापक होता गया।

विधानसभा में बीरेन सिंह के कुकी और मैतेई विधायकों के बीच दरार खुलकर सामने आ गई। कुकी राजनीतिक नेताओं ने उन पर राज्य को सांप्रदायिक बनाने और नए मैतेई सशस्त्र समूहों, अरामबाई तेंगगोल और मैतेई लीपुन का समर्थन करके उनके समुदाय को निशाना बनाने का आरोप लगाया।

ये वही विधायक थे जिन्होंने कुकी सशस्त्र समूहों के खुले समर्थन से 2022 में मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह का समर्थन किया था।

"वे [सशस्त्र समूह] आदिवासी राजनीति का हिस्सा हैं, अगर कोई चुनाव लड़ना चाहता है तो उसे उनका समर्थन लेना होगा। जिन उम्मीदवारों का वे समर्थन करते हैं, उनके निर्वाचित होने के बाद उन्हें [राज्य सरकार से] विभिन्न कॉन्ट्रैक्ट मिलते हैं," राज्य के एक राजनैतिक पर्यवेक्षक ने कहा, जो सुरक्षा कारणों से अपना नाम नहीं ज़ाहिर करना चाहते थे।

जैसे-जैसे जातीय संघर्ष तेज होता जा रहा है, कुकी समुदाय के विद्रोही समूह और राजनेता, जो कभी एक मैतेई मुख्यमंत्री के साथ थे, अब स्पष्ट रूप से खुद को उनसे दूर कर रहे हैं।

2019 के आम चुनावों के विपरीत, जब भाजपा ने कुकी-ज़ो को मैदान में उतारा था, इस बार उनके के पास बाहरी मणिपुर सीट के लिए कोई उम्मीदवार नहीं है, जो पहाड़ी जिलों को कवर करती है। लेकिन इनर मणिपुर (घाटी) सीट के लिए अपने चुनावी अभियान में, यह कहता है कि इनका ध्यान भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाकर "मणिपुर के लोगों" को बचाने, फ्री मूवमेंट रेजीम (एफएमआर) को समाप्त करके, "अवैध प्रवासियों की पहचान" करना और ऐसे अन्य मुद्दे जो अब तक संघर्ष में शामिल रहे हैं।

अलग राज्य की मांग

जातीय हिंसा के लिए बीरेन सिंह को जिम्मेदार ठहराने के बावजूद, भाजपा के कुकी नेताओं ने अभी तक उनके मंत्रिमंडल या पार्टी से इस्तीफा नहीं दिया है।

इस दौरान कई कुकी-ज़ो सिविल सोसाइटी समूह अपने समुदाय के अधिकारों और मांगों के प्रमुख समर्थक के रूप में उभरे हैं। हिंसा की शुरुआत के बाद से यह समूह जिन प्रमुख मांगों को लेकर लगातार लामबंद हो रहे हैं, उनमें से एक है मणिपुर से अलग एक प्रशासनिक व्यवस्था। यह प्रस्ताव शुरू में 10 कुकी-ज़ो विधायकों द्वारा रखा गया था, जिनमें से सात भाजपा के हैं।

"दुर्भाग्य से, वे [केंद्र] इस मांग को दबाने की कोशिश कर रहे हैं और मेरा मानना है कि वे कोशिश कर रहे हैं या शायद वास्तव में वह बीरेन की बातों पर भरोसा कर रहे हैं," एक कुकी-ज़ो विधायक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया।

जब उनसे पूछा गया कि क्या कुकी विधायकों ने पार्टी से इस्तीफा देने की योजना बनाई है, तो उन्होंने कहा: "अगर आज मैं भाजपा से इस्तीफा दे दूं, तो पार्टी... मुझे विधानसभा से अयोग्य घोषित कर देगी," उन्होंने कहा, "(यह) बहुसंख्यकवादी सरकार चाहती है कि भाजपा के अधिकांश या कुछ विधायक इस्तीफा दें और वह उपचुनाव कराएं।"

मैतेई समुदाय और विशेष रूप से बीरेन सिंह के खिलाफ गुस्से को देखते हुए, राज्य के मुख्यमंत्री द्वारा समर्थित उम्मीदवार के लिए कुकी-बहुल पहाड़ी इलाकों में उपचुनाव जीतना असंभव लगता है।

लेकिन उक्त विधायक कुछ और ही इशारा करते हैं। "हमारे लोग आदिवासी हैं, अगर कोई उपचुनाव होता है तो वह [सरकार] जैसे चाहें वैसे पार्टी के आधार पर लोगों को विभाजित कर सकते हैं। वे यही चाहते थे और भारत में राजनीति इसी तरह होती रही है।''

आगामी चुनावों में, कोई कुकी-ज़ो उम्मीदवार चुनाव नहीं लड़ रहा है। बाहरी मणिपुर सीट के लिए मैदान में सभी उम्मीदवार नागा हैं और भाजपा नागा पीपल्स फ्रंट के उम्मीदवार का समर्थन कर रही है।

मणिपुर की राजनीति की परतें, राजनैतिक अभिजात वर्ग और जातीय विभाजनों के परे उनके हितों के बीच संबंध, इस सरल छवि को ख़ारिज करते हैं कि यह दो समुदायों के बीच का टकराव है।

युवा और उम्रदराज बंदूकधारी पुरुष अब पड़ोसी कुकी और मैतेई गांवों से अपने गांवों की रक्षा करते हैं। हर थोड़े दिनों पर गोलीबारी और मौतें सुर्खियों में होती हैं।

भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में इंटेलिजेंस जुटाने की जानकारी रखने वाले एक सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी के अनुसार, इस तरह की "निम्न स्तर की हिंसा अधिक खतरनाक है"।

"ये संकेत हैं कि लोगों को भर्ती करके प्रशिक्षण दिया जा रहा है," उन्होंने कहा। ड्रग्स के अवैध व्यापार पर इस संघर्ष का क्या असर होगा, इस सवाल पर वह कहते हैं, "अस्थिरता के समय में (ड्रग्स की) आवाजाही और वितरण बढ़ जाता है।"

"मैतेई लोग पहाड़ियों पर नहीं जा सकते, और कुकी लोग घाटी में नहीं आ सकते। लेकिन ड्रग्स अब भी हर जगह जा सकते हैं,'' 3.5 कलेक्टिव के जोगेश ने कहा।