नई दिल्ली: नरेंद्र मोदी सरकार ने 2020 में विवादास्पद नए कृषि कानून पेश किए । उन्होंने कॉर्पोरेट इकाइयों को चावल, गेहूं और दाल जैसी वस्तुओं की जमाखोरी करने की अनुमति दी । साथ ही कृषि संबंधी वस्तुओं को नियंत्रित बाजारों के बाहर बेचा जाना भी सुलभ बनाया जिससे सुनिश्चित न्यूनतम मूल्य पर असर पड़ा और कृषि कार्य को बड़े पैमाने पर कॉर्पोरेट जगत को ठेके पर दिए जाने का आधार तैयार हुआ ।

इससे किसानों में विद्रोह भड़क उठा । हजारों की संख्या में किसान दिल्ली के बाहरी इलाके में एक साल तक गर्मी, सर्दी और कोरोना वायरस के ख़तरे का सामना करते हुए डेरा डाले रहे । किसानों का मानना ​​था कि कानूनों से मित्रवत व्यापारियों को मदद मिलेगी । अडानी समूह, जिसकी किस्मत नरेंद्र मोदी के उदय के साथ ही चमक उठी और जिस पर अक्सर केंद्र सरकार के साथ करीबी संबंध होने का आरोप लगाया जाता है, इसके बाद गंभीर रूप से आलोचना का सामना कर रहा था क्योंकि माना जा रहा था कि इस समूह को इन कानूनों से सबसे ज़्यादा फायदा होगा ।

'द रिपोर्टर्स कलेक्टिव' द्वारा पूर्व में अप्रकाशित दस्तावेज़ों से पता चलता है कि अडानी समूह ने कृषि वस्तुओं की जमाखोरी पर प्रतिबंध हटाने के लिए अप्रैल 2018 में सरकार से चतुराई पूर्वक इस बात की पैरवी की थी । दो साल बाद लाए गए केंद्र के तीन विवादास्पद कृषि कानूनों में से एक ने ठीक ऐसा ही किया ।

कृषि कानून अध्यादेश लागू होने से ढाई साल पहले, नीति आयोग द्वारा 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लिए बनाई गई टास्क फोर्स की बैठक में अडानी समूह के प्रतिनिधि ने कहा था: "आवश्यक वस्तु अधिनियम उद्योगों/ उद्यमियों के लिए अवरोधक साबित हो रहा है ।"

यह कंपनियों को कृषि उपज की जमाखोरी से रोकने वाले आवश्यक वस्तु अधिनियम को हटाने के लिए अडानी समूह द्वारा किए आधिकारिक प्रयास की पहली ठोस घटना थी । आलोचकों ने तर्क दिया कि कानून को निरस्त करने से कृषि व्यवसाय में अडानी समूह जैसे कॉर्पोरेट जगत को बगैर किसी रोकटोक के कृषि उपज को जमा करने की इजाज़त मिली और ऐसा किसानों की क़ीमत पर किया गया ।

इस खोजपरक श्रृंखला के पहले भाग में हमने गुपचुप तरीक़े से उस टास्क फोर्स की उत्पत्ति के बारे में विस्तार से बताया जिसने किसानों के जीवन स्तर की बेहतरी के तौर तरीक़े खोजने के लिए ज़्यादातर व्यवसायियों के साथ मशविरा किया । श्रृंखला के इस अंतिम हिस्से में, हम बंद दरवाजों के पीछे हुई ऐसी चर्चाओं को उजागर करेंगे जहां कॉर्पोरेट घरानों ने अपनी असलियत दिखाई एवं सरकार ने अपने इरादे ज़ाहिर किए ।

नीति आयोग ने 2018 में भाजपा के करीबी एनआरआई सॉफ्टवेयर व्यवसायी की सलाह से कॉरपोरेट का इस्तेमाल कर किसानों की आय दोगुनी करने के लिए टास्क फोर्स का गठन किया । (भाग 1 पढ़ें)।

इस कदम ने किसानों की आय दोगुनी करने के लिए 2016 से अस्तित्व में आई औपचारिक अंतर-मंत्रालयी समिति के जनादेश को आंशिक रूप से हड़प लिया, यह समिति प्रधानमंत्री द्वारा पहली बार किसानों की आय दोगुना करने के सपने का ज़िक्र करने के दो माह बाद गठित की गई थी ।

एक तरफ जहां अंतर-मंत्रालयी समिति ने एक्टिविस्ट, अर्थशास्त्रियों और उद्योग के नेताओं के एक व्यापक समूह से परामर्श किया और भारत के कृषि क्षेत्र की समस्याओं का विश्लेषण करते हुए 14 भाग जारी किए, साथ ही किसानों की आय बढ़ाने के तौर तरीके सुझाए, दूसरी तरफ टास्क फोर्स ने अडानी समूह, पतंजलि आयुर्वेद, महिंद्रा ग्रुप और बिगबास्केट जैसे चुनिंदा बड़े कॉरपोरेट्स से परामर्श किया । अजीब बात यह है कि दोनों पैनलों का नेतृत्व एक ही व्यक्ति अशोक दलवई ने किया था । 'द रिपोर्टर्स कलेक्टिव'  ने दलवई को विस्तृत प्रश्नावली भेजी । याद दिलाने के लिए रिमाइंडर भेजे जाने के बावजूद उन्होंने जवाब नहीं दिया ।

टास्क फोर्स के एक सदस्य ने नाम न छापने की शर्त पर खुलासा किया कि टास्क फोर्स को जानबूझकर उन प्रश्नों के समाधान खोजने के लिए बनाया गया था जो इससे पहले इस समिति द्वारा पेश किए गए समाधानों से अलग थे ।

सदस्य ने 'द रिपोर्टर्स कलेक्टिव' को बताया, "किसानों की आय दोगुनी करने के विषय पर बनी समिति सरकारी समाधानों के साथ अनेक तरह की रिपोर्ट्स लेकर आ रही थी । हम चीजों को अलग तरह से करना चाहते थे । हम बाज़ार-आधारित समाधानों की तलाश में थे ।"

दिनांक 3 अप्रैल, 2018 को टास्क फोर्स ने निजी फर्मों के प्रतिनिधियों से परामर्श किया । एक-एक करके उन्होंने अपने बेहद साधारण और मामूली इनपुट दिए ।

उदाहरण के लिए, महिंद्रा एंड महिंद्रा ने 'अब ट्रैक्टर कॉल करो' के बारे में बात की, यह इस ग्रुप की किराए पर ट्रैक्टर देने की सेवा है जिसके बारे में इस ग्रुप का दावा है कि यह "खेती के सेवा कार्य" मॉडल के अंतर्गत आती है । पतंजलि आयुर्वेद के प्रतिनिधि ने कहा कि कंपनी बायबैक आश्वासन के साथ किसानों को बेहतर उपज वाले बीज प्रदान करती है । पतंजलि आयुर्वेद ने किसानों के साथ ऐसे समझौतों पर हस्ताक्षर करने का प्रस्ताव भी दिया जो "किसान एवं उपभोक्ता के बीच सीधा संबंध" स्थापित करता । आईटीसी ने विस्तार से बताया कि वह अपने मिशन सुनहरा कल के माध्यम से "ग्रामीण आजीविका को कैसे सुदृढ़" बना रहा है । बैठक में किसी भी कंपनी ने यह आंकड़े साझा नहीं किेए कि उनके मॉडल से किसानों की आय में किसी तरह की मात्रात्मक वृद्धि कैसे हुई ।

अडानी समूह ने किसानों के साथ सूचना प्रसार के लिए गुजरात में अडानी पोर्ट्स और एसईजेड के मालिकाना हक़ वाली भूमि पर उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करने की बात कही । ग्रुप ने यह प्रस्तावित किया कि इस उत्कृष्टता केंद्र को स्थापित करने की लागत का साठ प्रतिशत हिस्सा सरकार की ओर से आएगा ।

किसानों की आय दोगुनी करने के लिए अडानी के मॉडल में एक उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करने की बात थी । इस उत्कृष्टता केंद्र को 60% प्रतिशत सरकारी फंडिंग से स्थापित होना था ।

जिन दस कॉरपोरेट्स से टास्क फोर्स ने परामर्श लिया उनमें से नौ ने अपने मॉडल के लिए नीति में परिवर्तन के लिए कहा । इन नौ में से चार ने सरकार से आर्थिक सहायता मांगी।

उसी बैठक में, अडानी एग्रो ने मुद्दे की बात पर आते हुए अपने कृषि-व्यवसाय की प्रगति में आने वाली बाधाओं के बारे में बात की ।

कंपनी के प्रतिनिधि अतुल चतुर्वेदी ने इस बैठक में कहा, "आवश्यक वस्तु अधिनियम उद्योगों/उद्यमियों और बदले में किसानों के लिए एक अवरोधक साबित हो रहा है ।"

अडानी समूह के प्रतिनिधि ने टास्क फोर्स की बैठक में आवश्यक वस्तु अधिनियम के खिलाफ समूह के कड़े रुख से अवगत कराया

इस रुख में निहित संदेश यह था कि जो कंपनी के लिए अच्छा होगा वही किसानों के लिए भी अच्छा होगा । हालांकि बाद में जब केंद्र ने कॉरपोरेट्स के पक्ष में आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन किया तो किसानों ने इस कदम का विरोध किया ।

हालांकि किसानों की आय दोगुनी करने के उद्देश्य से दलवई की अगुवाई वाली समिति ने भी स्टॉक सीमा को उदार बनाने की सिफारिश की थी, किंतु साथ ही किसानों की सुरक्षा के उपाय भी जोड़े थे । समिति ने विशिष्ट नीतिगत सिफारिशों को सूचीबद्ध करने के विषय पर अपने अंतिम खंड में कहा, "यह अनुशंसा की जाती है कि निजी संगठन, जो किसानों से सीधे न्यूनतम समर्थन मूल्य दरों पर स्टॉक खरीदते हैं, को स्टॉक सीमा से सशर्त छूट का विकल्प दिया जाए, साथ ही परिवर्तनीय निर्यात सीमाओं में छूट का विकल्प भी दिया जाए ।"

सरकार ने अंततः जब एक कृषि क़ानून के माध्यम से आवश्यक वस्तु अधिनियम को कमज़ोर किया तो इसमें दलवई की अगुवाई वाली समिति द्वारा प्रस्तावित सुरक्षा उपाय शामिल नहीं किए थे । इसके बजाय सरकार द्वारा लाए गए कानूनों ने व्यावसायिक हितों को प्राथमिकता दी एवं अगस्त 2020 में संसद में पेश किए गए संशोधन विधेयक में कहा गया, "व्यापार करने में सुगमता पर आधारित वातावरण बनाने की ज़रूरत थी"।

साल 1955 में लाया गया आवश्यक वस्तु अधिनियम सरकार के लिए ऐसा साधन है जो बाजार में कीमतों में उतार-चढ़ाव की देखरेख करता है और जमाखोरी विरोधी उपाय के रूप में खाद्य भंडार को विनियमित करता है । व्यापारी अक्सर बड़ी मात्रा में अनाज जमा करते हैं और खाद्यान्न की कमी होने पर जब क़ीमतें बढ़ती हैं तो उन्हें बेच देते हैं ।

सितंबर 2020 में तीन कृषि क़ानूनों में से एक के माध्यम से अधिनियम में किए संशोधन ने राज्यों को दी गई इन शक्तियों को हटा दिया । केंद्र केवल असाधारण परिस्थितियों में स्टॉक सीमा लगा सकता था जैसे अकाल जैसी स्थितियों में या जब खाद्य वस्तुओं की खुदरा कीमतें पिछले वर्ष की तुलना में 50% से अधिक बढ़ जाएं । लेकिन खाद्य निर्यातकों और "मूल्य श्रृंखला प्रतिभागियों" (अधिनियम ने वाक्यांश परिभाषित नहीं किया) को ऐसी सीमाओं से छूट दी गई थी ।

यह विशेष खंड अडानी समूह जैसे समूहों के लिए एक वरदान था, जो 2005 से भारतीय खाद्य निगम के लिए अनाज कोष्ठागार का विकास और संचालन कर रहा है । इसके अतिरिक्त इस समूह के भंडारण, परिवहन (समूह के पास खाद्यान्न के परिवहन में इस्तेमाल होने वाली रेलवे रेक भी हैं) एवं जहां से खाद्यान्न का निर्यात किया जाता है उन बंदरगाहों में व्यावसायिक हित भी हैं ।  

टास्क फोर्स ने जिन फर्मों से परामर्श किया उनके कुल राजस्व में इतनी वृद्धि हुई कि उनका राजस्व सैंकड़ों करोड़ रुपए तक पहुंच गया ।

उदाहरण के लिए वित्तीय वर्ष 2022-23 की अंतिम तिमाही के दौरान आईटीसी के कृषि व्यवसाय प्रोफिट में उल्लेखनीय वृद्धि हुई । पिछले वित्तीय वर्ष में इसी अवधि की तुलना में मुनाफा 25.9% बढ़कर 300 करोड़ रुपये तक पहुंच गया । यूनाइटेड फॉस्फोरस लिमिटेड के लिए वित्तीय वर्ष 2023 का राजस्व वित्तीय वर्ष 2022 के आंकड़ों की तुलना में 16% बढ़कर 53,576 करोड़ रुपये हो गया ।

दूसरी ओर किसानों की आय में केवल मामूली वृद्धि ही हुई है । सरकार के 2018-19 के नवीनतम उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक एक किसान की औसत मासिक आय 2015-16 में 8,059 रुपये से बढ़कर 10,218 रुपये तक पहुंच गई है । यह वर्ष 2022 तक आय दोगुनी करने के इच्छित लक्ष्य का केवल 48% है ।

विशेषज्ञों ने 'द रिपोर्टर्स कलेक्टिव' को बताया कि कॉर्पोरेट कंपनियों का कृषि में प्रवेश अपने आप में कोई समस्या नहीं है, लेकिन उन्होंने आगाह किया कि किसी भी कंपनी का व्यवसाय करने का मॉडल "स्वयं की सेवा" वाला होगा । उन्होंने कहा कि इस तरह के व्यापारिक मॉडल में कॉर्पोरेट का फोकस अधिकतम लाभ कमाना होगा जिसमें कोई फर्म किसानों को कम भुगतान कर अपनी लागत बचाएगी- नतीजतन किसानों की आय दोगुनी करने का उद्देश्य नाकाम हो जाएगा । इसकी बजाय व्यापार का यह मॉडल व्यवसायों के लिए अधिक मुनाफा कमाने की शुरुआत की तरह कार्य करेगा ।

इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट फॉर डेवलपमेंट रिसर्च की एसोसिएट प्रोफेसर सुधा नारायणन ने बताया, "देखा जाए तो अधिकांश प्रसंस्करण प्रौद्योगिकी बड़े पैमाने की है इसलिए इस क्षेत्र को बड़े खिलाड़ियों की आवश्यकता है, लेकिन एक कॉर्पोरेट हाउस कृषि उपज की खरीद पर होने वाले खर्च को कम करके अपनी लागत को कम करने की कोशिश करेगा । अंत में, वे अपने अधिक मुनाफ़े के बारे में सोचेंगे । उन्होंने बताया कि सच्चाई यह है कि किसानों या कृषि से जुड़े एक्टिविस्ट को चर्चा से बाहर रखा गया जो कि एक खतरे का संकेत है ।

किसानों की आय में बढ़ोतरी करने के नाम पर कृषि का कॉर्पोरेटीकरण करने की खुल्लखुल्ला कोशिशें किसानों की चिंताओं से निपटने के मोदी सरकार के तौर तरीकों के एकदम विपरीत हैं ।

साल 2014 से 2018 के बीच देश में लगभग 13,000 किसान विरोध प्रदर्शन हुए । लंबे समय से चली आ रही उनकी मांगें- जैसे बाजार के उतार-चढ़ाव से सुरक्षा के लिए कानूनी रूप से अनिवार्य न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) और आपदाओं के खिलाफ फसल बीमा- को टास्क फोर्स द्वारा की गई चर्चा में पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया । सरकार ने एक साल तक चले किसानों के विरोध प्रदर्शन के बाद एमएसपी के कानूनी कार्यान्वयन की संभावनाएं तलाशने के लिए एक समिति बनाने का वादा किया था । किसानों के विरोध प्रदर्शन ने वैश्विक ध्यान आकर्षित किया एवं इस दौरान 700 मौतें भी हो गईं । हालांकि एमएसपी पर ऐसी कोई समिति नहीं बनाई गई । हालांकि सरकार ने कॉर्पोरेट जगत को किसानी में प्रवेश देने के लिए एक टास्क फोर्स का गठन करने में आतुरता से कदम बढ़ाए ।

'द रिपोर्टर्स कलेक्टिव' ने अडानी समूह, नीति आयोग, कृषि एवं किसान कल्याण विभाग तथा उन फर्मों को जिनसे टास्क फोर्स ने परामर्श लिया है, को विस्तार से प्रश्न भेजे । रिमाइंडर भेजे जाने के बावजूद उनमें से किसी ने भी जवाब नहीं दिया ।

पूर्व कृषि सचिव सिराज हुसैन और पूर्व ग्रामीण विकास सचिव जुगल महापात्रा ने द प्रिंट  के लिए लिखे गए एक कॉलम में पाया कि यह खास संशोधन सबसे "व्यापार अनुकूल" था । इस कॉलम में उन्होंने लिखा, "बहस योग्य सवाल यह है कि जब फसल कट जाएगी और कीमतें सबसे कम होंगी तो क्या कॉरपोरेट किसानों को उचित कीमत देंगे ।" उन्होंने कहा, "इस सवाल का कोई आसान जवाब नहीं है ।"

इस कॉलम में हालांकि पूर्व सचिव इस बात को लेकर अनिश्चित बने रहे कि क्या इस क्षेत्र का व्यापारीकरण करने से किसानों को लाभ होगा, उन्होंने अपने लेख को एक चेतावनी के साथ समाप्त किया: "यदि इस व्यवसाय में एकाधिकार पैदा होता है तो उपभोक्ताओं के लिए चिंता की अधिक बात हो सकती है । वर्तमान में सरकार के पास निजी तौर पर भंडारित स्टॉक की मात्रा जानने का कोई तरीका नहीं है ।

व्यापार-अनुकूल टास्क फोर्स पर आयोग की फाइल 6 जुलाई, 2020 को अशोक दलवई की एक चिट्ठी के साथ समाप्त हुई जिसमें एक महीने पहले सरकार द्वारा कृषि पर लाए गए अध्यादेशों का जश्न मनाया गया ।

आठ महीने बाद किसानों के विरोध प्रदर्शन के दौरान नीति आयोग के रमेश चंद ने चेतावनी दी कि यदि कानूनों को वापस लिया गया तो किसानों की आय दोगुनी नहीं हो सकेगी । दिसंबर 2021 में कृषि कानूनों को निरस्त कर दिया गया ।

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