नई दिल्ली: साल 2015 में जब कोयला खदान ब्लॉकों की पहली नीलामी हो रही थी, तब केंद्र सरकार ने पश्चिम बंगाल को 83 मिलियन टन के सरिसाटोली कोयला ब्लॉक के लिए बोली लगाने के अधिकार से अवैध रूप से वंचित कर दिया था। द रिपोर्टर्स कलेक्टिव द्वारा दस्तावेजों की समीक्षा में यह बात सामने आई है।

केंद्र के इस कदम से एक निजी कंपनी को मिलीभगत करके कोयला ब्लॉक की नीलामी में धांधली करने में मदद मिली। जब नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) ने इस गड़बड़ी को पकड़ा, तो सरकार ने स्वीकार किया कि पश्चिम बंगाल बोली लगाने के लिए योग्य था। लेकिन धोखाधड़ी के बावजूद, सरकार ने नीलामी का बचाव किया। 

जिन राज्यों में विपक्षी पार्टियों की सरकारें हैं, वह नरेंद्र मोदी सरकार पर उनके वित्तीय दोहन का आरोप लगाते रहे हैं और पश्चिम बंगाल सरकार ऐसे आरोप लगाने में अग्रणी है, लेकिन पहली बार एक साक्ष्य सामने आया है जिससे पता चलता है कि राज्यों की संसाधनों तक पहुंच, शुरू से ही मोदी सरकार के विवेकाधिकार के अधीन रही है। इसने निष्पक्ष और प्रतिस्पर्धी नीलामी के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश को भी कमजोर किया है।

नीलामी में हेर-फेर

अगस्त 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि नीलामी का यह खेल गलत तरीके से खेला जा रहा था, और उसने इसे रद्द कर दिया। कोर्ट ने फैसला सुनाया कि सीमेंट, स्टील और बिजली कंपनियों को 1993 से किया गया 204 कोयला ब्लॉकों का आवंटन मनमाना और अवैध था। सरकार और उसके नौकरशाह राष्ट्रीय संपत्ति की सही कीमत लिए बिना, अपनी मर्जी से निजी और सरकारी कंपनियों को कोयला ब्लॉक आवंटित कर रहे थे। खनन किए जाने वाले कोयले का उचित मूल्य निर्धारित करने के लिए कोई प्रतिस्पर्धी बोलियां नहीं लगाई गईं। कोर्ट ने खनन के लाइसेंस रद्द करने के साथ ही जुर्माना भी लगाया, और निर्देश दिया कि इन खदानों से अब तक खनन किए गए प्रत्येक टन कोयले के लिए 295 रुपए 'अतिरिक्त जुर्माने' के रूप में वसूले जाएं। तब तक एक नई केंद्र सरकार ने सत्ता संभाल ली थी और उसने इस गलती को सुधारने का वादा किया था। 

दो महीने बाद, केंद्र सरकार अपना पहला अध्यादेश -- कोयला खान विशेष उपबंध अध्यादेश -- लेकर आई, जिसमें कोयला ब्लॉक आवंटित करने के दो तरीके बताए गए। कुछ ब्लॉकों को नीलामी के लिए रखा जाएगा जबकि कुछ अन्य सीधे सरकारी कंपनियों को आवंटित किए जाएंगे। कौन सी खदान नीलाम की जाती है और कौन सी सीधे आवंटित की जाती है, इसका निर्णय तब भी सरकार की मर्जी के अनुसार हो सकता था। 

यदि पहले किसी कोयला ब्लॉक का खनन कर चुकी कंपनी नई व्यवस्था के तहत उसी या अन्य खदानों के लिए नए सिरे से बोली लगाना चाहती है या केंद्र से किसी ब्लॉक को सीधे आवंटित करने की मांग करती है, तो ऐसी स्थिति में क्या होगा? इसपर अध्यादेश में कहा गया कि किसी भी ब्लॉक के लिए बोली लगाने से पहले, कंपनी को सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्देशित अतिरिक्त जुर्माने का भुगतान करना होगा। लेकिन इसमें भी एक जटिलता थी।  

सरकारी कंपनियां, जिन्हें 1993-2011 के बीच ब्लॉक आवंटित किए गए थे, वह खनन का काम पट्टे पर निजी हाथों में दे देती थीं। ऐसे में क्या वह सरकारी कंपनी जुर्माने का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी थी या वह निजी कंपनी जिसने अंततः पट्टे पर ब्लॉक का खनन किया था?

अध्यादेश में यह स्पष्ट नहीं था। सरकार को जल्द ही इसका एहसास हो गया और अध्यादेश लाने के एक महीने के भीतर ही आतंरिक विचार-विमर्श शुरू हो गया।  भारत के अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी से सलाह ली गई। उनकी सलाह पर सरकार ने निर्णय लिया कि यदि खदान पट्टे पर दी गई है तो खननकर्ता ही जुर्माने का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होगा, न कि वह कंपनी जिसे मूल रूप से ब्लॉक आवंटित किया गया था।

'पूर्व आवंटी' किसे माना जा सकता है, इस पर कोयला मंत्रालय का स्पष्टीकरण। इसमें से 'आल्सो (भी)' शब्द हटा दिया गया जो दूसरे अध्यादेश में मौजूद नहीं था।

इस 'स्पष्टीकरण' के साथ दूसरा अध्यादेश 26 दिसंबर, 2014 को जारी किया गया। अगले दिन, नीलामी के लिए निर्धारित कोयला खदानों की सूची के साथ एक निविदा जारी की गई।

इनमें पश्चिम बंगाल की दो खदानों की नीलामी के लिए आवेदन करने वाली कंपनियों में वेस्ट बंगाल पावर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड (डब्ल्यूबीपीडीसीएल) भी थी। सरिसाटोली कोयला ब्लॉक भी नीलाम होने वाली खदानों में से एक था। इस खदान में 83 मिलियन टन कोयला भंडार था और इसे पहले आरपी संजीव गोयनका समूह के स्वामित्व वाली कलकत्ता इलेक्ट्रिसिटी सप्लाई कॉर्पोरेशन (सीईएससी) को आवंटित किया गया था, जिसे शीर्ष अदालत ने 203 अन्य आवंटनों समेत रद्द कर दिया था। यह समूह बिजली, आईटी, शिक्षा, रिटेल और मीडिया में रुचि रखता है और इसका राजस्व 4 बिलियन डॉलर है।

दूसरा ब्लॉक जिसके लिए पश्चिम बंगाल पावर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन ने बोली लगाने की कोशिश की थी वह था 48.4 मिलियन टन के भंडार वाला ट्रांस दामोदर ब्लॉक। पश्चिम बंगाल सरकार की एक अन्य कंपनी ने अंततः नीलामी में यह ब्लॉक हासिल कर लिया।

लेकिन केंद्रीय कोयला मंत्रालय ने 26 फरवरी 2015 को डब्ल्यूबीपीडीसीएल को अयोग्य घोषित कर दिया। मंत्रालय की समिति ने कहा कि कंपनी को नीलामी में प्रवेश करने से अयोग्य ठहराया गया था क्योंकि यह "पूर्व आवंटी है और उसने निर्धारित समय के भीतर जुर्माना नहीं भरा है"।

समिति ने पश्चिम बंगाल सरकार के निगम को 'पूर्व आवंटी' घोषित किया क्योंकि इसे पहले आवंटित पांच खदानें उन 204 ब्लॉकों में से थीं जिनके आवंटन को सुप्रीम कोर्ट ने अवैध पाया था।

इतना तो सही है, क्योंकि पिछली सरकार में डब्ल्यूबीपीडीसीएल को पांच खदानें आवंटित की गई थीं। लेकिन निगम ने सभी पांचों खदानों को संयुक्त उद्यम के तहत एक निजी कंपनी, ईएमटीए कोल लिमिटेड, को पट्टे पर दे दिया था। अटॉर्नी जनरल की सलाह और उसके बाद दूसरे कोयला अध्यादेश के अनुसार, निजी कंपनी ईएमटीए कोल लिमिटेड अतिरिक्त जुर्माने का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी थी, न कि डब्ल्यूबीपीडीसीएल। 

केंद्रीय कोयला मंत्रालय का निर्णय उसी दौरान जारी किए गए कोयला खान (विशेष उपबंध) के दूसरे अध्यादेश के विपरीत था।

लेकिन उस निर्णय की विश्वसनीयता और कम हो गई जब कोयला मंत्रालय ने नीलामी की उसी किस्त में निगम को छह खदानें सीधे आवंटित कर दीं। कोयला मंत्रालय के तर्क के अनुसार, निगम को इनमें से किसी भी आवंटन के लिए योग्य नहीं होना चाहिए था।

मंत्रालय के फैसले का मतलब था कि वेस्ट बंगाल पावर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन एक प्रमुख नीलामी में भाग नहीं ले सका। और नीलामी आरपी संजीव गोयनका समूह ने जीत ली। बाद में पता चला कि इस कंपनी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले इसके पास मौजूद खनन ब्लॉक को वापस पाने के लिए नीलामी प्रक्रिया में धांधली की थी।

कैग की ऑडिट के दौरान नीलामी में गड़बड़ी सामने आई।

कैग ने 2016 में संसद को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में कोयला नीलामी प्रक्रिया पर संदेह जताया। उसे सबूत मिले कि आरपी संजीव गोयनका समूह की कंपनियों ने सरिसाटोली खदान की नीलामी के लिए बोली लगाते समय मिलीभगत की थी। कैग के प्रोटोकॉल के तहत इस तरह की मिलीभगत को 'धांधली' माना जाता है, लेकिन ऑडिटर ने बिना किसीका नाम लिए इस मामले को एक केस स्टडी के रूप में प्रस्तुत किया। 

इसने केस स्टडी में खदान का नाम या बोली लगाने वालों की पहचान का खुलासा नहीं किया गया था। इस ब्लॉक की नीलामी में वित्तीय दौर में पहुंचने वाली पांच बोलीदाता कंपनियों में से तीन एक ही समूह की थीं। इन तीनो में से एक ने तो मूल कंपनी के ही इंटरनेट प्रोटोकॉल (आईपी) एड्रेस से बोली लगाई थी। यह निष्पक्ष नीलामी के एक प्रमुख पहलू -- बोली की गोपनीयता -- का उल्लंघन था।

हालांकि कैग ने अपनी 2016 की रिपोर्ट में नामों का खुलासा नहीं किया, 2023 में द रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने आंतरिक ऑडिट दस्तावेज़ों की पड़ताल की और सारी तस्वीर सामने आ गई।

कैग के आंतरिक पत्राचार का अंश।

ऐसा सामने आया कि कैग ने जो केस स्टडी प्रस्तुत की थी वह पश्चिम बंगाल स्थित सरिसाटोली ब्लॉक के लिए थी और मिलीभगत करने वाली कंपनियां आरपी संजीव गोयनका समूह का हिस्सा थीं। केंद्र सरकार ने पश्चिम बंगाल सरकार को ब्लॉक के लिए बोली लगाने से अवैध रूप से रोककर, निजी कंपनी को मिलनेवाली संभावित प्रतिस्पर्धा को कम कर दिया था। 

सरकार ने (आंतरिक रूप से) मानी गलती

सरकार ने 2016 में आंतरिक पत्राचार में स्वीकार किया कि बंगाल सरकार की कंपनी बोली लगाने के लिए योग्य थी। कैग को दिए एक जवाब में सरकार ने कहा था: "जब यह स्पष्ट किया गया कि यद्यपि डब्ल्यूबीपीडीसीएल पूर्व आवंटी थी…अध्यादेश की अनुसूची II के अनुसार, खनन पट्टा बंगाल ईएमटीए कोल माइंस लिमिटेड के पक्ष में निष्पादित किया गया था और इसलिए अतिरिक्त जुर्माने का भुगतान करने का दायित्व डब्ल्यूबीपीडीसीएल का नहीं था। इसलिए डब्ल्यूबीपीडीसीएल आवंटन प्रक्रिया के लिए तकनीकी रूप से योग्य थी।"

कैग के एक्शन टेकेन नोट्स के कुछ अंश।

फिर केंद्र सरकार ने पश्चिम बंगाल सरकार को बोली लगाने के अधिकार से वंचित करने के फैसले को किस तरह उचित ठहराया? 

केंद्र ने दलील दी कि भले ही पश्चिम बंगाल को अवैध रूप से उसके अधिकारों से वंचित कर दिया गया था, फिर में नीलामी में पर्त्याप्त प्रतिस्पर्धा थी।

"सरिसाटोली कोयला खदान के मामले में पांच बोलीदाता तकनीकी रूप से योग्य थे और आईपीओ (इनिशियल प्राइस ऑफरिंग) खुलने के बाद, ये पांच बोलीदाता ई-ऑक्शन में भाग लेने के लिए उत्तीर्ण हुए। सरिसाटोली कोयला खदान के ई-ऑक्शन में लगाई गई बोलियों की कुल संख्या 167 थी।”

“इस प्रकार, डब्ल्यूबीपीडीसीएल की अयोग्यता के बावजूद, इस प्रक्रिया में पर्याप्त प्रतिस्पर्धा थी,” सरकार ने तर्क दिया। और आगे कहा, ''इसलिए ऑडिट टिप्पणियां हटाई जा सकती हैं।''

हालांकि, कैग इससे सहमत नहीं था और उसने कोयला मंत्रालय पर आधे-अधूरे तर्कों पर निर्भर करने का आरोप लगाया।

कैग ने कहा, “मंत्रालय ने ऑडिट रिपोर्ट में किए गए ऑडिट अवलोकन पर अपना जवाब दोहराया है और मंत्रालय के जवाब में ऑडिट खंडन पर कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है, जैसा कि ऑडिट रिपोर्ट में दिया गया है।"

इसके बावजूद, आरपी संजीव गोयनका समूह का सरिसाटोली कोयला ब्लॉक पर कब्जा बरकरार है। याद दिलाने के बावजूद कोयला मंत्रालय ने द रिपोर्टर्स कलेक्टिव  द्वारा भेजे गए विस्तृत प्रश्नों का जवाब अभी तक नहीं दिया है।

कोयला मंत्रालय ने बयान जारी कर हमारी जाँच को निराधार बताया। हमारी प्रतिक्रिया पढ़ें, जहाँ हम उनके बयान की तथ्यात्मक जाँच करते है।