
नई दिल्ली: एशियन न्यूज इंटरनेशनल (ANI) की तस्वीरों का अपने यूट्यूब चैनल पर उपलब्ध वीडियोज़ में प्रयोग करने के चलते यूट्यूब ने सुमित (अनुरोध करने पर बदला हुआ नाम) को ये सूचित किया था कि ANI ने इन सभी वीडियोज़ से अपने कॉपीराइट का उल्लंघन होने की बात कही है। और यूट्यूब की तरफ से आई इस सूचना के बाद अब सुमित के पास अपने यूट्यूब चैनल को बचाने के लिए सात दिनों का वक्त था।
सुमित को एक साथ तीन से अधिक कॉपीराइटों का उल्लंघन करने के आरोप में नामजद किया गया था। चिन्हित किए गए इन वीडियोज़ को तात्कालिक तौर से हटा लेने के साथ यूट्यूब ने सुमित से ये भी कहा था कि मुमकिन है कि जल्द ही उनके चैनल को भी हमेशा के लिए बंद कर दिया जाए। किसी यूट्यूबर के द्वारा कॉपीराइट का उल्लंघन करने की खबर मिलने पर यूट्यूब, यूट्यूबर के वीडियो को हटा लेता है। एक के बाद एक कुल तीन कॉपीराइटों का उल्लंघन करने पर यूट्यूब ने सुमित को बाहर का रास्ता दिखाकर उनको अच्छी चपत लगाई थी। और अब अपने बचाव में दलील पेश करने के लिए सुमित के पास महज सात दिन थे।
कई नौकरियों में अपनी किस्मत आजमाने के बाद सुमित ने यूट्यूब का रुख किया था। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के ऊपर आलोचनात्मक टिप्पणी करने की शैली भूतपूर्व पत्रकारों, कॉमेडियन्स और नागरिकों के बीच आकर्षण का केंद्र रही है, सुमित ने भी यूट्यूब पर बीजेपी की आलोचना करने वाले राजनीतिक टिप्पणीकार के रूप में अपनी पहचान बनाई थी। अब सुमित का सामना उस पचपन वर्ष पुराने विशालकाय मीडिया संस्थान, ANI, से था जो संस्थान दोनों, TV न्यूज और सोशल मीडिया के क्रिएटर्स, को दैनिक रूप से वीडियो रिपोर्टें प्रदान करने का प्राथमिक जरिया बन चुका है।
सुमित ने बताया कि उन्होंने ANI से संपर्क किया था। बातचीत के आखिरी में सुमित के चैनल के खिलाफ की गई रिपोर्टों को वापस लेने के लिए कॉपीराइट उल्लंघन के हर्जाने और लाइसेंस फीस के रूप में ANI ने सुमित से 15-18 लाख रुपए (पहचान गुप्त रखने के लिए सटीक धनराशि नहीं लिखी गई है) की माँग की थी। सुमित के द्वारा कम पैसे पर मान जाने के लिए बार-बार अनुरोध करने के बावजूद ANI अपनी माँग से टस से मस नहीं हुआ।
सुमित कहते हैं कि कॉपीराइट उल्लंघन के मसले को सुलझाने और अपने चैनल को बचाने के लिए उन्होंने ANI को ‘पूरा पैसा’ दे दिया। बदले में सुमित के चैनल पर की गई रिपोर्टों को वापस लेने के साथ- साथ ANI ने सुमित को अपनी लिखित खबरें और ऑडियो-विजुअल प्रयोग करने के लिए एक साल की संभावित अनुमति दे दी।
यूट्यूब की कॉपीराइट संबंधी नियमावली को इसके दंडात्मक स्वरूप में साध कर ताबड़तोड़ तरीके से कॉपीराइट के दावें करते हुए भारत में राजस्व की उगाही करने की ANI की इस नई रणनीति के भुक्तभोगी सिर्फ सुमित ही नहीं हैं। बात ये है कि, यूट्यूब के डेथ क्लॉज और कॉपीराइट की हुई सामग्री के न्यायसंगत प्रयोग के ऊपर भारत की अस्पष्ट नियमावली की आड़ में, ANI बेहद सफलतापूर्वक यूट्यूब क्रिएटर्स को एक वर्ष के महँगे लाइसेंसों को खरीदने के लिए बाध्य कर रहा है।
हालाँकि यूट्यूबरों के चैनलों द्वारा बहुत से कॉपीराइटों का उल्लंघन करने को लेकर कार्यवाही करने का काम खुद यूट्यूब के अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आता है लेकिन, बीजेपी की आलोचना करने के लिए जाने- जाने वाले बहुत से यूट्यूबर्स को मिलाकर, कई यूट्यूबर्स को महँगे लाइसेंस बेचने की डील में मोल-तोल करने का जिम्मा ANI ने संभाल रखा है।
सुमित के अतिरिक्त द कलेक्टिव ने तीन ऐसे अन्य यूट्यूबरों से बात की जिनके खिलाफ कॉपीराइट उल्लंघन करने का आरोप लगाते हुए ANI ने रिपोर्टें दायर की हैं। जब हम इन यूट्यूबरों से बात कर रहे थे ये यूट्यूबर रिपोर्टें दायर होने के बाद या तो ANI से समझौता कर चुके थे या फिर समझौता करने के रास्ते में थे। इन यूट्यूबरों से रिपोर्टों को वापस लेने की एवज में ANI ने पहले- पहल 15 से 25 लाख रुपए की माँग की थी। इस बात की पुष्टि करने के लिए कि क्या ANI ने वास्तव में इन यूट्यूबरों से इतना पैसा माँगा था हमने इन यूट्यूबरों की ANI से हुई बातचीत को जाँचा- परखा। हालाँकि हम इस दावे की पुष्टि नहीं कर सकते हैं लेकिन इंडस्ट्री के अंदर के खबरियों ने हमें बताया कि तीन अन्य लोग अपने साथियों को ANI की तरफ से मोटा पैसा माँगे जाने की बात बता रहे थे, और इन तीन में से एक व्यक्ति से तो 40 लाख रुपए तक की माँग की गई थी। जब हमने ANI से इस विषय में बात की तो अपने जवाब में ANI ने इस दावे को सिरे से नहीं नकारा।
जहाँ ANI एक ऐसा व्यापार कर रहा है जिसे वो वैध और साफ- सुथरा समझता है वहीं इस पूरे प्रकरण से कॉपीराइट संबंधी कानूनों और भारत में कंटेंट प्रोड्यूसरों द्वारा ऑडियो-विजुअल्स का न्यायसंगत प्रयोग करने के उनके अधिकारों की यथास्थिति को लेकर गहरे सवाल खड़े होते हैं। यूट्यूब की नियमावली और कंटेंट पर कॉपीराइट रखने वाले मालिक के द्वारा यूट्यूबरों से समझौता करने की इच्छा, ये वो दो चक्के हैं जिनके बीच पिसते हुए यूट्यूबर अपनी रोजी-रोटी खोने को लेकर चिंतित रहते हैं। और कभी- कभी इस जोखिम के चलते कई यूट्यूबर वर्षों तक मेहनत कर के खड़े किए गए अपने चैनल को गँवा भी बैठते हैं।
1 करोड़ 32 लाख सब्सक्राइबरों के साथ यूट्यूब पर मौजूद भारत के सबसे प्रसिद्ध पत्रकार, रवीश कुमार, ने द कलेक्टिव को बताया कि हालाँकि कॉपीराइट उल्लंघन से बचने के लिए वो सभी जरूरी सावधानियाँ बरतते हैं और उनको किसी भी संस्थान की तरफ से कोई नोटिस भी नहीं आया है, लेकिन कॉपीराइट के इस पूरे विषय को लेकर वो चिंतित हैं।
रवीश कहते हैं कि, “कॉपीराइट के उल्लंघन के इस विषय में सिर्फ यूट्यूब, यूट्यूबर्स को सुरक्षा प्रदान कर सकता है और उसे सुरक्षा प्रदान करनी भी चाहिए। कॉपीराइट के मसले को लेकर यूट्यूब क्रिएटर्स के साथ काफ़ी अच्छे से संपर्क में रहता है, लेकिन फिर भी एक बात जो मुझे परेशान करती है वो ये है कि कॉपीराइट का उल्लंघन करने का महज दावा करती सिर्फ तीन रिपोर्टों के आधार पर किसी चैनल को यूट्यूब पर कुछ समय के लिए बंद कर दिया जाता है। वीडियो को रिपोर्ट करने की जगह वीडियो को हटा लेने का नोटिस भेजने की व्यवस्था भी तो की जा सकती है। लेकिन जब तक इस विषय को समझने वाला कोई सही अधिकारी कॉपीराइट उल्लंघन की घटना के ऊपर कोई फैसला न ले ले चैनल को बंद नहीं किया जाना चाहिए।”
रवीश आगे कहते हैं कि, “अगर किसी यूट्यूबर को वीडिओ रिपोर्ट करने की धौंस दिखाकर कोई संस्थान उसे लाखों रुपए देने को मजबूर करता है तो मेरी समझ में ये व्यापार करने की कोई सही प्रकिया नहीं है। किसी केस में जब ये बात सुनिश्चित हो जाए कि कॉपीराइट का उल्लंघन हुआ है सिर्फ तभी हर्जाना वसूला जा सकता है, लेकिन ये हर्जाना कोई 100 करोड़ के मानहानि के मुकदमे जैसा नहीं होना चाहिए। किसी भी मामले में अगर किसी को कोई सजा दी जा रही है तो ये सजा उसकी तरफ से किए गए अपराध के अनुपात में होनी चाहिए। किसी के रोजी-रोटी के साधनों और उसकी वर्षों की मेहनत को कैसे, महज तीन कॉपीराइटों के उल्लंघन के आधार पर, एक झटके में उजाड़ा जा सकता है?”
किसी नामी न्यूज संस्थान के द्वारा, न्यूज और राजनीतिक हँसी-मजाक के क्षेत्र में यूट्यूब पर, सक्रिय क्रियेटर्स को कॉपीराइट उल्लंघन के आरोप में इतने बड़े स्तर पर लपेटने की इस घटना को सार्वजनिक क्षेत्र में उछली इस प्रकार की पहली घटना कहा जा है। बीते दिनों किसी पारंपरिक मीडिया संस्थान के द्वारा कॉपीराइट का दावा करने का एक चर्चित मामला तब प्रकाश में आया था जब, न्यूजलॉन्ड्री द्वारा इंडिया टुडे के एंकरों की चाभी कसने को लेकर, वर्ष 2021 में इंडिया टुडे ने मानहानि और कॉपीराइट उल्लंघन का आरोप लगाते हुए न्यूजलॉन्ड्री के ऊपर केस दायर कर दिया था।
हमने इस स्टोरी में कही गई बातों, दावों और तथ्यों से संबंधित विस्तृत प्रश्नों की एक लिस्ट को ANI को भेजा था। ANI ने हमारे द्वारा कही गई किसी भी बात या दावे को न तो नकारा और न ही हमारे द्वारा पूछे गए चुनिंदा प्रश्नों का जवाब दिया, बल्कि ANI ने अपनी नीतियों और क्रिया-कलापों का बचाव करते हुए हमसे एक सामान्य सी बात कह दी। ANI ने कहा कि: कायदे- कानून से चलने वाले किसी भी समाज में चोरी करने पर दंड देने का प्रावधान होता है। देश-दुनिया में फैले अपने ऑफिसों से असली खबरों को जुटाने के लिए ANI भारी निवेश करता है और साथ में जरूरी संसाधनों को मौके पर तैनात कर के ANI शीघ्रता से कंटेंट बनाता है। अपने कंटेंट के कॉपीराइट का एकमात्र मालिक होने के नाते अपने इस काम को जनता के लिए प्रसारित करने या फिर इस काम के प्रयोग को लाइसेंसीकृत करने का वैधानिक अधिकार सिर्फ ANI के पास है।”
ANI ने आगे कहा कि, “यूट्यूब की कॉपीराइट संबंधी नियमावली या फिर कानूनी कार्यवाही के तहत ANI के स्वयं के वैधानिक अधिकारों की पूर्ति करना कोई वसूली करने का काम नहीं है, बल्कि कॉपीराइट कानून जैसी गारंटी देते है ये तो ANI की संपत्ति का कानूनन बचाव है। अगर कोई भी हमारे अधिकारों पर प्रश्न चिह्न लगाता है तो वो कानून का सहारा लेने के लिए स्वतंत्र है।”
ANI का पूरा स्टेटमेंट और ANI से पूछे गए हमारे प्रश्न इस स्टोरी के अंत में मौजूद हैं।
हमने यूट्यूब से सवाल पूछा कि, उसके प्लेटफार्म पर यूट्यूबर के काम के खिलाफ कॉपीराइट उल्लंघन का दावा किए जाने पर यूट्यूब की तरफ से पहले-पहल ही फैसला सुना देने की नीति क्या सही है? और क्या इस नीति के विवेकानुसार क्रिएटर्स के वीडियो या चैनल को बंद कर देने के निर्णय से, क्रिएटर्स, कॉपीराइट का दावा करने वाले की अपेक्षा घाटे में रहते हैं?
यूट्यूब के प्रवक्ता ने हमें बताया कि, “कंटेंट पर कॉपीराइट रखने वाले मालिक के अधिकारों और यूट्यूब पर मौजूद लोगों की रचनात्मक गतिविधियों के बीच तालमेल बैठाने के लिए यूट्यूब अपनी तरफ से भरसक कोशिश करता है। ये यूट्यूब के अधिकार क्षेत्र की बात नहीं है कि हम ये निर्णय ले की कंटेंट पर “मालिकाना हक’’ किसका है, इसलिए जहाँ कंटेंट पर कॉपीराइट रखने वाले व्यक्ति को अपने कंटेंट पर मालिकाना हक जमाने के लिए हम टूल्स प्रदान करते है वहीं यदि यह हक गलत तरीके से जमाया जा रहा है तो इनके खंडन के लिए हम अपलोडर्स टूल्स भी प्रदान करते है।”
हमने अपनी पड़ताल में पाया कि यूट्यूब की तरफ से कही गई ये बात पूरी तरह से सही नहीं है। यूट्यूब कॉपीराइट उल्लंघन की बात उठते ही पहले- पहल फैसला तो देता है, लेकिन फिर यूट्यूब इस बात को क्रिएटर्स के ऊपर ही छोड़ देता है कि वो कॉपीराइट के उल्लंघन के दावे का या तो खंडन करें या फिर दावा करने वाले से डील करने की मुद्रा में आ जाए। यूट्यूब ने संक्षिप्त में हमारे साथ अपनी कॉपीराइट संबंधी नियमावली को साझा किया, लेकिन ये नियमावली इंटरनेट के इस सरताज के उपरोक्त लिखित कथन से मेल नहीं खाती है।

बात ये है कि भारत के कॉपीराइट संबंधी कानूनों और भारत में यूट्यूब की नियमावली के बीच पसरा अपरिभाषित क्षेत्र चीजों को धुंधला कर देता है जिससे ANI को और अधिक मोल-तोल करने का मौका मिल जाता है।
ANI तो है ही लेकिन यूट्यूब भी कुछ कम है क्या?
अगर किसी ने किसी वस्तु का कॉपीराइट ले रखा है तो भारत का कॉपीराइट एक्ट 1957 “निष्पक्ष व्यवहार” के दायरे में रहकर इस वस्तु के प्रयोग की इजाजत देता है।
1957 के इस कानून का सेक्शन 52 उपरोक्त लिखित “निष्पक्ष व्यवहार” की आधारशिला रखते हुए किसी वस्तु पर किसी व्यक्ति का कॉपीराइट होने के बावजूद इस व्यक्ति की अनुमति के बिना उसकी वस्तु का प्रयोग विभिन्न कार्यों, जैसे आलोचना, टिप्पणी, न्यूज, रिपोर्टिंग आदि, के लिए करने की इजाजत देता है।
व्यावहारिक रूप से निष्पक्ष-प्रयोग की इस पूरे सिद्धांत को अमल में कैसे लाया जाए इसको लेकर कोई सीधा सा कानून या नियम नहीं हैं। निष्पक्ष-प्रयोग का सिद्धांत सिर्फ इस प्रश्न तक सिमट सकता है कि क्या किसी दो मिनट लंबे वीडियो में से न्यूज और विश्लेषण के लिए चार सेकंड की एक क्लिप का प्रयोग करने को कंटेंट का निष्पक्ष-प्रयोग माना जाएगा कि नहीं? कॉपीराइट को लेकर स्पष्ट दिशानिर्देश न होने के कारण हर एक मामले में समझौता कराने के लिए अदालत को मध्यस्थता करनी पड़ती है।
यूट्यूब पर न्यूज और राजनीतिक चीजें परोसने वाले जिन-जिन यूट्यूबरों से हमने बात की उन्होंने दोनों, भारतीय कानून और यूट्यूब के भारतीय कानून से संबंध, में ANI की सामग्री के निष्पक्ष-प्रयोग को लेकर स्पष्टता की कमी होने की बात कही।
यूट्यूब दावा करता है कि कॉपीराइट उल्लंघन की शिकायतों का बारीकी से निरीक्षण करने के लिए उसके पास अपनी एक विधा है। अपने सार्वजनिक सूचना मंच पर यूट्यूब ने ये दावा किया है कि यदि किसी वस्तु पर कॉपीराइट ले लिया गया है तो कॉपीराइट लेने वाली संस्था की अनुमति के बिना वैश्विक स्तर पर इस वस्तु के प्रयोग के लिए यूट्यूब ने 1998 के एक कानून को लागू कर रखा है। ये कानून 1998 का अमेरिका का डिजिटल मिलेनियम कॉपीराइट एक्ट है। इस कानून के तहत कॉपीराइट प्राप्त वस्तुओं पर प्रदान की गई छूट, यूट्यूब के तर्क के अनुसार उसके प्लेटफार्म पर, कॉपीराइट प्राप्त कंटेंट के “निष्पक्ष-प्रयोग” से संबंधित नियमावली के रूप में वैश्विक स्तर पर लागू है। यूट्यूब कहता है कि तकनीकी तौर पर ये छूट न्यूज, व्यंग और पैरोडी जैसे कंटेंट के ऊपर लागू होती है। हमको दिए गए अपने उत्तर में यूट्यूब ने कहा कि वो “उपयुक्त कॉपीराइट कानूनों” के अंतर्गत काम करता है। लेकिन यूट्यूब के उत्तर से ये स्पष्ट नहीं होता है कि “उपयुक्त कॉपीराइट कानूनों” से उसका अर्थ भारत के कॉपीराइट कानूनों से है या फिर “उपयुक्त कॉपीराइट कानूनों’’ से वो अमेरिका के उपरोक्त लिखित कानून को इंगित कर रहा है। यूट्यूब ने अपनी क्रियाविधि का एक सारांश प्रदान किया है जिसे इस स्टोरी के अंत में पढ़ा जा सकता है।
क्रिएटर्स की तरफ से यूट्यूब पर कॉपीराइट का उल्लंघन होने पर यूट्यूब की जवाबदेही भी बनती है। इसलिए कॉपीराइट उल्लंघन की बात उठते ही तात्कालिक रूप से अपने विवेक के आधार पर यूट्यूब, क्रिएटर्स के कंटेंट को अपने प्लेटफार्म से हटा लेता है और इस प्रकार कंटेंट पर मालिकाना हक जताने वाले लोगों की तकरार भरी खर्चीली मुकदमेबाजी से यूट्यूब बच जाता है।
जिन क्रिएटर्स से हमने बात की उन्होंने हमें बताया कि भारत में यूट्यूब बहुत बचते- बचाते हुए काम करता है। कॉपीराइट उल्लंघन संबंधी दावे की वैधानिकता से जुड़े कानूनी पचड़े में पड़ने की वजाय भारत में यूट्यूब रिपोर्ट किए गए कंटेंट को तात्कालिक रूप से अपने प्लेटफार्म से हटा लेने को, अपने लिए ज्यादा फायदेमंद मानता है।
क्रिएटर्स ने दावा किया कि यूट्यूब निष्पक्ष-प्रयोग के सिद्धांत को महत्ता नहीं देता है और ये प्लेटफार्म वीडियो पर कॉपीराइट उल्लंघन का आरोप लगते ही, आरोप के सत्यता की सही से परख किए जाने के कहीं पहले, आरोपित वीडियो को हटा लेता है। यूट्यूब मुख्यता ऐसा इसलिए करता है, क्योंकि अगर यूट्यूब वीडियो को तुरंत नहीं हटाएगा तो ANI यूट्यूब को कॉपीराइट का उल्लंघन करने वाले कंटेंट को प्रकाशित करने के लिए जिम्मेदार ठहरा सकता है। यूट्यूब निष्पक्ष-प्रयोग के सिद्धांत को कुछ ऐसे साधता है कि उसकी जिम्मेदारी पर कोई प्रश्न चिन्ह भी न लगा पाए और साथ में कॉपीराइट उल्लंघन के किसी भी विवाद पर अंतिम निर्णय के लिए अदालत का दरवाजा भी खुला रहे।

छोटे स्तर के क्रिएटर्स की बलशाली और मुकदमेबाज संस्थाओं को अदालत में घेरने की अक्षमता के चलते निष्पक्ष-प्रयोग का सिद्धांत और भी पंगु हो जाता है। मुकदमेबाजी में बहुत पापड़ बेलने पड़ते हैं और अंत में मुकदमे का फैसला क्रिएटर्स के पक्ष में आने की कोई गारंटी भी नहीं होती, इसलिए अन्तोगत्वा अधिकांश यूट्यूबर्स के चैनल पर की गई कार्यवाही को वापस नहीं लिया जाता है।
यूट्यूब की एक और नियमावली है जिसने क्रिएटर्स की दुर्गति कर रखी है। अगर यूट्यूबर के चैनल के खिलाफ नब्बे दिन के अंदर तीन रिपोर्टें दर्ज होती हैं तो चैनल खुद-व-खुद डिलीट हो जाता है और इस प्रकार चैनल के क्रिएटर को यूट्यूब पर प्रतिबंधित कर दिया जाता है। बड़े क्रिएटर्स के लिए यूट्यूब रिपोर्ट दर्ज होने के बाद उनको अपने ऊपर दर्ज रिपोर्टों की संख्या को कम करने के लिए सात दिनों की मोहलत देता है। लेकिन इन सात दिनों में टिक-टिक करके आगे बढ़ती हुई घड़ी कंटेंट पर कॉपीराइट रखने वाली संस्था के समक्ष क्रिएटर को घुटनों पर लाती जाती है।
यूट्यूब के नियमों के अनुसार सात दिनों तक टिक-टिक करते हुए आगे बढ़ती हुई ये घड़ी ही ANI और यूट्यूबर के बीच सौदेबाजी के समय ANI को ज्यादा मोल-तोल करने का मौका देती है।
कॉपीराइट के क्षेत्र में सक्रिय एक वकील इस विषय पर प्रकाश डालते हुए कहते हैं कि, “ANI अपने कंटेंट की एवज में क्रिएटर से मोटा पैसा क्यों ले पाता है? क्योंकि यूट्यूब की प्रक्रिया इस लेन-देन को अनुमति प्रदान करती है।”
जहाँ एक ओर चूँकि कोर्ट-कचहरी से न्याय पाने की तरकीब खर्चीली और थकाऊ होती है इसलिए अलग-थलग पड़े खिन्न कंटेंट क्रिएटर्स को ये तरकीब रास नहीं आती है, वहीं दूसरी ओर यूट्यूब अमेरिका के बाहर मुकदमेबाजी में फँसने से बचता है।
इंडियन कॉपीराइट एक्ट और IT के नियमों के तहत ANI संभवतः यूट्यूब पर कथित रूप से अपने कॉपीराइटों के उल्लंघन करने का एक मुकदमा ठोक सकता है। ANI सामान्यतः मुकदमेबाजी को लेकर उत्सुक रहा है। पिछले साल से ANI ने तकनीकी क्षेत्र से जुड़ी हुई कई बड़ी अमेरिकी कंपनियों के खिलाफ मुकदमें दायर किए हैं। जून 2024 में ANI ने विकिपीडिया की मालिक कंपनी विकिमीडिया फाउंडेशन के खिलाफ मुकदमा दायर कर दिया था। वहीं नवंबर 2024 में ANI ने ओपनएआई के ऊपर मुकदमा दर्ज करा दिया था। ANI की तरफ से दाखिल किए गए ये सभी मुकदमें और वर्तमान में कोर्ट-कचहरी का माहौल गंभीर तौर पर यूट्यूब को ANI के समक्ष कमतर कर देता है।
टेक्नोलॉजी, मीडिया और टेलीकॉम के क्षेत्र में विशेष योग्यता रखे वाले ट्राईलीगल नामक लॉ फर्म के सहभागी, निखिल नरेंद्रन कहते हैं कि, “भारत में मध्यस्थता कराने वाले को उतनी अच्छी सुरक्षा नहीं मिलती है जितनी सुरक्षा दुनिया की अन्य जगहों पर उपलब्ध कराई जाती है। भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को उतना नहीं बचाया जाता है जितना इसका बचाव अमेरिका में होता है।”
क्रिएटर्स को मंच प्रदान करने वाले यूट्यूब सरीखे प्लेटफॉर्म मध्यस्थ के रूप जाने जाते हैं।
निखिल आगे कहते हैं कि, “परिणामस्वरूप अक्सर अमेरिकी कंपनियाँ भारत की अपेक्षा अमेरिका में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का बचाव कहीं ज्यादा अच्छे से करती हैं। ये तार्किक बात है कि दुनिया के दूसरे हिस्सों की तुलना में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को हमारे समाज में कम अहमियत दी जाती है। इसलिए मध्यस्थता के समय सार्वजनिक हितों के बचाव, जैसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या ज्ञानवर्धन, की अपेक्षा कॉपीराइट सरीखे निजी अधिकारों या मानहानि जैसे विषयों से जुड़े तुच्छ दावें करने पर जोर ज्यादा रहता है।
अमेरिका और भारत में अपनाई जा रही यूट्यूब की इस दुहरी नीति को इस बात से समझा जा सकता है कि क्या और किसकी रक्षा के लिए यूट्यूब सार्वजनिक रूप से मोर्चा संभालता है। उदाहरण के तौर पर अमेरिका और यूरोप दोनों जगह यूट्यूब ये बात स्पष्ट रूप से बताता है कि कंटेंट की कौन-कौन सी श्रेणियाँ कॉपीराइट के दायरे में नहीं आती हैं। अमेरिका के कुछ चुनिंदा यूट्यूबरों को यूट्यूब अदालत में कॉपीराइट संबंधी मुकदमों को लड़ने के लिए 10 लाख डॉलर तक का लीगल फंड भी मुहैया कराता है। हालाँकि अमेरिका के उलट भारत में कंटेंट क्रिएटर्स के प्रति अपने दायित्वों को बताने लेकर यूट्यूब ऊहापोह की स्थिति में रहता है।
यूट्यूब की तरफ से मिली सीमित सुरक्षा के कारण क्रिएटर्स के पास कोर्ट जाकर दोनों, यूट्यूब और ANI, के ऊपर मुकदमा करने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं रह जाता है। लेकिन अधिकांश कंटेंट क्रिएटर इस कशमकश में रहते है की कोर्ट का सहारा लें भी की न लें।
यहाँ तक कि अगर यूट्यूबर इस बात को लेकर आश्वस्त भी होते हैं की उन्होंने जितनी तस्वीर या वीडियो क्लिप का प्रयोग अपने वीडियो में किया है उतना प्रयोग कॉपीराइट कानूनों के अंतर्गत मान्य है तब भी उन्हें अदालत में अपने से बड़े मुकदमेबाजों, ANI और यूट्यूब का सामना करना पड़ता है। इस स्थिति में किसी निष्पक्ष समाधान की गारंटी के बिना यूट्यूबर का चैनल 2-3 महीनों तक बंद रह सकता है। वहीं यदि अनजाने में या किसी अन्य कारण से यूट्यूबर कॉपीराइट कानूनों की मान्य सीमा को लाँघकर सीमित दायरे से ज्यादा तस्वीर या वीडियो क्लिप का प्रयोग कर लेते हैं, तो इस कॉपीराइट के उल्लंघन पर उनकी कमाई के एकमात्र साधन, उनके चैनल, को बंद करने की यूट्यूब की तरफ से आई हुई धमकी ANI को पैसा देने के अतिरिक्त उनके सामने कोई दूसरा विकल्प नहीं छोड़ती।
द कलेक्टिव से यूट्यूबरों ने आश्चर्यजनक तौर पर छोटी वीडियो क्लिपों का प्रयोग करने पर भी ANI द्वारा उनके कंटेंट को रिपोर्ट किए जाने की बात कही। यूट्यूबरों ने कहा कि टिप्पणी करते वक्ता के चेहरे को दिखाता हुआ एक वीडियो जिसमें- एक दस सेकंड से कम और एक तीस सेकंड से कम की- दो क्लिपों को निचले भाग में लगाया गया था उसके ऊपर भी ANI ने रिपोर्ट दर्ज कराई है। चूँकि ये यूट्यूबर अभी भी ANI से मोल-तोल कर रहें हैं, इसलिए यूट्यूब द्वारा उनके हटाए गए सारे कंटेंट की पड़ताल करने की हमको इजाजत देने में वो हिचकिचा रहे थे। इसलिए ANI के द्वारा निशाने पर ली गई सभी वीडियो क्लिपों को हम नहीं परख पाए। लेकिन भारत में कॉपीराइट के निष्पक्ष-प्रयोग का सिद्धांत काफ़ी व्यक्तिपरक है और इस सिद्धांत के जुड़े मसलों में मध्यस्थता करना बहुत जटिल काम है इसलिए भारत में यूट्यूब के लिए ये आसान रहता है कि वो, अलग-अलग खिलाड़ियों के समर्थन से बड़े खिलाड़ियों को घेरने की जगह, बड़े खिलाड़ियों के साथ खड़ा रहे।

छोटी वीडियो क्लिपों को प्रयोग करने को लेकर ANI के द्वरा निशाने पर लिए गए यूट्यूबरों के उलट कुछ यूट्यूबरों ने माना की उन्होंने ANI की वीडियो क्लिपों को इतने बड़े पैमाने पर प्रयोग किया था कि इंडियन कॉपीराइट एक्ट के अंतर्गत निष्पक्ष-प्रयोग का हवाला देकर शायद इस कंटेंट की अहर्ता को सिद्ध कर पाना संभव नहीं है।
ANI की आक्रामकता को देखकर यूट्यूबर्स आश्चर्यचकित हैं। एक क्रिएटर ने मतलब की बताते हुए कहा कि, “मुझे पता था की एक दिन ANI कॉपीराइट स्ट्राइक करेगा पर मुझे लगा कि मैं उसे कम पैसे में निपटा लूँगा।”
कॉपीराइट से संबंधित ऐसे बहुत से जटिल प्रश्न हैं जिनसे यूट्यूबर्स को जूझने के लिए छोड़ दिया गया है। उदाहरण के लिए एक जटिल प्रश्न ये है कि सरकार के ऑफिसरों और मंत्रियों की तरफ से सोशल मीडिया पर साझा किए गए वीडियोज़ पर मालिकाना हक किसका है? वीडियोज़ के मालिकाना हक के इस विषय पर कोई स्पष्टता नहीं है।
भारतीय कंटेंट प्रोड्यूसर्स के द्वारा यूट्यूब चैनलों पर ANI के कंटेंट का प्रयोग कैसे इंडियन कॉपीराइट एक्ट में परिभाषित “निष्पक्ष-व्यवहार” की श्रेणी में नहीं आता है, ये एक ऐसा प्रश्न है जिसका ANI ने हमें कोई जवाब नहीं दिया।
2024 के लोकसभा चुनाव ने यूट्यूब पर राजनीतिक आलोचना करने के काम को एक लाभदायक व्यापार के रूप में स्थापित करने में मदद की थी। उस समय जब कोई भी BJP की आलोचना नहीं कर रहा था तब नागरिकों के लिए, निर्भीकतापूर्वक BJP के ऊपर हल्ला बोलने वाले, कंटेंट क्रिएटर इंटरनेट पर मौजूद स्टार बन गए थे। BJP व मीडिया के द्वारा BJP को जिम्मेदार न ठहराने जाना ये दो ऐसे विषय हैं जिनकी चीर-फाड़ करते हुए दैनिक रूप से वीडियो अपलोड करने के लिए लोगों को एक अच्छे कैमरे, सरपट सोच-विचार और सोशल मीडिया से प्राप्त न्यूज क्लिपों की जरूरत होती है। और ये सब करके अच्छा पैसा कमाया जा सकता है।
कुछ मिलियन सब्सक्राइबर्स के साथ राजनीतिक टिप्पणी करने वाले एक चैनल के यूट्यूबर ने हमें बताया कि, “एक औसत वर्ष में मैं यूट्यूब से 50-60 लाख रुपए कमा लेता हूँ। और चुनावी मौसम में जब धंधा जोर पर होता है तब कमाई आसमान छूने लगती है।”
ANI के द्वारा BJP की खबरों को चापलूसी भरे तरीके से परोसे जाने के कारण ANI भी चर्चा में रहा है। ANI के मालिक संजीव प्रकाश की पत्नी एवं ANI की एडिटर-इन-चीफ, स्मिता प्रकाश, ने दक्षिणपंथी झुकाव रखने वाले वुद्धिजीवियों के साथ बैठकर इस बात की चीर-फाड़ की थी की कैसे वामी झुकाव रखने वाले यूट्यूबरों ने पॉलिटिकल नैरेटिव के ऊपर अपनी पकड़ पुख्ता की है।
कॉपीराइट के इस झमेले से प्रभावित यूट्यूबरों ने ANI के साथ सौदेबाजी हो जाने कि बाद इस संस्थान से हुई अपनी बातचीत साझा की। यूट्यूबरों और ANI की इस बातचीत में ANI की एडिटर-इन-चीफ स्मिता प्रकाश और मैनेजिंग डायरेक्टर संजीव प्रकाश के बेटे, ईशान प्रकाश, का नाम भी आया था। ANI की यूट्यूबरों से हुई बातचीत में ईशान प्रकाश का क्या रोल था इसको लेकर ANI से सीधा प्रश्न पूछे जाने पर ANI ने कोई जवाब नहीं दिया।
जिस प्रकार से ANI के साथ इस पूरे प्रकरण ने प्रगति की है, आगामी समय में यूट्यूब और कंटेंट प्रोड्यूसर्स ऑनलाइन न्यूज मीडिया इंडस्ट्री की परिपाटी निर्धारित करने की स्थिति में आ सकते हैं। और साथ में कोर्ट या सरकार नहीं, बल्कि मोलतोल करने की असमान क्षमतायें रखने वाली संस्थाओं के बीच बंद दरवाजों के पीछे होने वाले समझौतों के आधार पर, कंटेंट के निष्पक्ष-प्रयोग के मानक कैसे तय होगे ये भी यूट्यूब और कंटेंट प्रोड्यूसर्स के द्वारा निर्धारित हो सकता है।
इस स्टोरी के ऊपर यूट्यूब की टिप्पणी और इस टिप्पणी पर द कलेक्टिव के जवाब को यहाँ पर पढ़ा जा सकता है।
